Saturday, March 7, 2015

भूत की कहानी का छठवां दिन (मेरे शरीर को कौन धकिया रहा था?)

पिछले पांच दिन अगर नहीं पढ़ें हों तो पहले पढ़ लो..क्योंकि आज की रात कयामत की है..आज फिर चारपाई वही थी..भाई भी वही था लेकिन मैंने अपनी चालाकी से चारपाई को बिलकुल बींचोंबीच खिसका कर ऐसा हिसाब किताब जमाया कि दोनों और से सुरक्षित रहूं...यही नहीं एक तरफ मां और दूसरी तरफ पिता जी की चारपाई...यानि चाक-चौबंद इंतजाम...अगर आप गांवों में रहे हों तो आपको पता होगा कि शाम ढलते ही कैसे वीरानी छाती हैं..अंधेरा पसरता है..और रोशनी को अपने साथ लेकर चलना पड़ता है...रात को जैसे ही चारपाई पर लेटा..बीती रात की डरावनी फिल्म हमारी आंखों में उतरना शुरू हो गई थी..साथ ही पेड़ की आकृति जेहन में छाई थी..कभी चारपाई और कभी पेड़ नजर आ रहा था..नींद उड़ी हुई थी....रात में जैसे ही सन्नाटा पसरा..आंखों को एक धागे जितना खोलकर करवट बदल रहा था कभी इस ओर देखता तो कभी दूसरी ओर.....




ये क्रम चल ही रहा था कि देखा कि पिता जी की चारपाई के नीचे कोई बिंदी जितनी रोशनी जगमगा रही थी..मेरे होश फाख्ता...रोशनी जगमगा ही नहीं रही थी..आगे पीछे भी हो रही थी....जब मन में दहशत भरी हो तो हर चीज में संदेह ही संदेह नजर आता है। यही मेरे साथ हो रहा था..मैं रोशनी पर थोड़ी सी आंख खोले नजर गढ़ाए था..और रोशनी भी भरपूर डरा रही थी....थोड़ी देर में देखा कि रोशनी चारपाई से बाहर निकल गई। मेरी हिम्मत नहीं हुई कि उस रोशनी को देखने के लिए चारपाई से उठ कर बैठूं...

खैर..रात पसरती जा रही थी...और मेरे दिल की धड़कनें भी...गहरा सन्नाटा था..आसमान में भी कालिमा सी छाई हुई थी...ऐसे में फिर वही एहसास शुरू हुआ..चारपाई कांपने लगी और साथ में मैं भी...दहशत चरम पर थी..लेकिन भय के साथ में ये जानना भी चाहता था कि वाकई ये क्या हो रहा है...तभी मैने महसूस किया कि किसी ने मेरे शरीर को हल्के से धकिया..अब मैंने करवट बदली और उसी ओर आंख खोलकर देखा तो एक छोटी सी गुड़िया जितनी आकृति खड़ी है और ऐसा लगा कि वही मुझे धक्का दे रही है..ये बच्ची जैसी आकृति बस बनती हुई दिख रही थी..तभी मैं उठकर बैठा तो देखा कि आकृति में हलचल हुई और फिर आंगन में बाहर की ओर तेजी से जाते दिखने लगी है.वो छोटी सी बच्ची जैसी आकृति कभी जमीन पर..तो कभी उससे ऊपर उठती..ऊपर नीचे होते ही ये छोटी सी बच्ची बाहर की ओर निकल गई...खासी ठंड में पूरे पसीने से तरबतर...फिर चादर ताना और सिर तक ढक लिया..लेकिन कभी लग रहा था कि वो छोटी सी बच्ची मेरी चारपाई के पास खड़ी है तो कभी लग रही है कि वो बाहर जा रही है..मेरे मानस पटल पर ये आकृति लगातार आगे-पीछे होती रही..पूरी रात ऐसी ही गुजरी..सुबह हुई...ये छोटी सी गुड़िया जैसी आकृति कौन थी...कल क्या गुल खिलाएगी ये आकृति..वापस आएगी या फिर नहीं....कल का इंतजार करिए.......ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com