Monday, March 9, 2015

भूत की कहानी का आठवां (हवा में तैरती सफेद फ्राक में गुड़िया)

दिन भर की मौज-मस्ती..दूसरे घर के दादा-दादी..चाचा-चाची..भतीजे-भतीजी फुल मजा आया..पिकनिक मन गई...लेकिन पुलिया पर बैठी वो मासूम गुड़िया के नजर आते ही सांस ऊपर नीचे होने लगी थी..फिर वही याद जेहन में दाखिल हो चुकी थी..और उसी गुड़िया की तस्वीर दिल-दिमाग में लेकर हवेली के भीतर दाखिल हुए...

हवेली पहुंचते ही थोड़ी ही देर में खाना-पीना हुआ..चारपाई बिछ गईं और थके-हारे थे..सो चारपाई पर बेजान से लेट गए लेकिन आंखों के आगे सफेद फ्राक पहने वो गुड़िया घूम रही थी..चादर ऊपर से नीचे ताने थे लेकिन वो लड़की कौन है..मुझे क्यों दिखाई दे रही है..मेरे आसपास क्यों मंडरा रही है...तमाम सवाल अंदर ही अंदर उथल-पुथल मचाए थे...तभी अचानक टन्न सी आवाज गूंजी..मुझे काटो तो खून नहीं..चादर आंखों से नीचे किया और अंधेरा में नजर दौड़ाई तो देखा कि जहां से आवाज आई..एक बड़ा सा साया हवेली के एक ओर उस जगह जाता है जहां हम हाथ-मुंह धोते हैं..और पास ही ऊंचाई पर पीने के पानी के घड़े रखे रहते हैं..साया धीरे..धीरे चला जा रहा था..जहां तक दिख सकता था..दिखा..मैं बुरी तरह सकपका चुका..ये हवेली है या फिर अबूझ पहली..सोच ही रहा था कि और उसी ओर नजरें टिकी हुईं थी कि देखा..साया लौट रहा था..लगा कि दम ही निकल जाएगा...देखते ही देखते साया आया और दो चारपाई छोड़ तीसरी चारपाई पर धम्म से बिछ गया...कौन था ये साया..घिग्घी बंधी हुई थी फिर भी थोड़ा सी कमर उठा कर देखा तो लगा कि सब सो रहे हैं और तीसरी चारपाई पर साया लेटा हुआ है...फिर दिमाग पर जोर डाला तो सोचा कि अंधेरे में साफ नहीं दिखा होगा..ये हो न हो पिताजी ही होंगे लेकिन दहशत तो दिमाग में पल ही चुकी थी और उससे उबरने का कोई चारा नहीं दिख रहा था...


रात गहरा रही थी..नींद कोसों दूर थी..इस साये ने और हलचल मचा दी थी..क्या है ये सब..कैसी-कैसे ख्याल आ रहे हैं..कैसी-कैसी घटनाएं हो रही हैं..किसी को बताओ भी तो मजाक समझ रहा है...खैर...सन्नाटे में..ख्यालों में डूबा हुआ ही था तभी लगा कि बगल में कोई खड़ा है..उसी तरफ करवट लिए हुए थे..आंख खोली तो देखा कि वही लड़की है...बिलकुल पास में खड़ी..वही सफेद फ्राक पहने हुए..आंखें चमक रही हैं..और अंधेरा में पूरा शरीर नजर ही नहीं आ रहा है..आंखों पर और जोर डाला तो लगा कि हौले-हौले मुस्करा सी रही है...वही हुआ जो होना था..जोर की चीख मारी और चारपाई से उठ बैठा..देखा कि वो गुड़िया तेजी से हवा में तैरती हुई..उछलती हुई..कभी नीचे..कभी ऊपर..लहराते हुए बाहर जा रही है...कुछ ही सेंकडस में पतंग सी लहराती हुई वो लड़की उड़न छू हो गई..तब तक मैं पसीने से तरबतर था और मेरी मां मेरी पीठ को सहला रही हैं..इतना डर चुका था कि मां से लिपट ही गया..उन्होंने पानी पिलाया और अपने साथ ले गई..अपनी ही चारपाई पर लिटाया और चिपका कर सो गईं..बोले-बेटा डरते नहीं..कभी-कभी हमें डरावने सपने आते हैं..सो जाओ..अब कुछ नहीं होगा..मैंने बताया कि कोई लड़की मुझे नजर आई...सफेद ड्रेस में..वो कौन थी...मां की समझ में नहीं आया..बोलीं सुबह बताएंगे..अभी सो जाओ..कोई नहीं था..मैं मानने को तैयार नहीं..धीरे-धीरे..सुबकते हुए मैं उन्हें बता रहा था कि सुबह लेकर अभी तक..बल्कि जब से आए हैं..वो लड़की मुझे अपने आसपास नजर आ रही है..मां बोली..बेटा सुबह बताएंगे..कौन है वो लड़की..अभी सो जाओ..रात बहुत हो चुकी है..जैसे-तैसे मां से चिपके हुए काफी देर के बाद आखिरकार मैं सोने का नाटक तो करने लगा लेकिन लड़की मेरी आंखों से जाने को तैयार नहीं..रात भर बिना करवट बदले लेटा रहा...आज तो इस लड़की ने जो घबराहट पैदा की थी..वो मैं शब्दों में बयां नहीं करता..सांस ऊपर-नीचे हो रही थी..तो भी डर लग रहा था..सांस की आवाज भी मानो डरा रही थी..रात भर मुर्दे की तरह न हिले-न डुले..पड़े रहे..

तभी फिर कानों में सन्न-सन्न करती हवा आने लगी..अचानक आसमान में गड़गड़ाहट..फिर आंखें फैलाईं तो देखा कि ऊपर आसमान में बिजली चमक रही है..थोड़ी देर में फिर गड़गड़ाहट..मौसम बिगड़ चुका था..इधर मेरा मौसम खराब..उधर आसमान में बिजली की चमक..आप भले ही आनंद ले रहे होंगे..लेकिन जिस हकीकत से मैं गुजर रहा था..नौ साल की उम्र में..आप सोचेंगे तो आप भी कांपने लगेंगे..ऐसा अंधरा..ऐसी मुस्कराती लड़की..जो लगातार मुझे डरा रही थी..ऊपर से रात में साये का जाना और आना...अंधेरे में खुला आसमान..जहां बहुत दूर कड़कती बिजली..किसी हारर फिल्म को भी देखूं तो न डरूं..लेकिन यहां कोई पर्दा नहीं था..हकीकत की फिल्म थी जिसका अगला हिस्सा मुझे नहीं पता था..कब होगा..कैसे होगा..क्या होगा..असल में इस लड़की का राज क्या है..क्या इस लड़की से मेरा कोई संबंध है..या फिर मेरे परिवार से कोई नाता है.और आपको बता दूं..डरना मत..ये कहानी का आठवां दिन है..और मेरे पास वैसे ही तस्वीर है..जिसका क्रम आठवां हैं..जैसे ही मैने तस्वीर सिलेक्ट की..मुझे समझ नहीं आया कि आठवां दिन और आठवीं तस्वीर..ये इत्तेफाक है या फिर आज भी वो लड़की मेरे जीवन में बनी हुई है.आपको भी पता चलेगा..बस कल का इंतजार करिए.....ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com