Wednesday, July 29, 2015

भूत की कहानी का 36 वां दिन( हवा में लहराते सांप और पेड़ पर बैठा उल्लू)

इस लड़की की दोस्ती और उसकी रहस्यमय दुनिया में अब थोड़ा सा रमने लगा था, कुछ जानने की जिज्ञासा थी, कुछ अपनापन लगने लगा था, कुछ सहानुभूति भी होने लगी थी। शाम ढलने को थी, तभी देखता हूं कि एक बुढिया सी लाठी लिए.गेट के बाहर खड़ी है, कुछ खाने को मांग रही है, दादी ने देखा तो बोलीं,जाओ उसे कुछ खाने को देकर आओ, रोटी-सब्जी लिए मैं गेट पर पहुंचा तो मुस्कराने लगी और दुआएं देने लगीं, तभी देखता हूं कि उसका आकार बदलने लगा है और नन्ही सी वही लड़की अपने रूप में आ गई, बोली आपसे मिलना था तो चली आई, रोटी-सब्जी खाते हुए उससे बात करने लगा। दादी अपने कामकाज में जुटी हुईं थीं, तभी बोली चलो हमारे साथ, शाम को बिना दादी से पूछे भला मैं कैसे जा सकता था, दादी ने बोला कि छोड़ दो उसे सड़क पार करा दो, मैं उस लड़की के साथ हवेली से दूर पहुंचा तो देखा कि लड़की को जब भी कोई शख्स दिखता, रूप बदल लेती। कभी लड़की, कभी बुढ़िया..खेल जैसा लग रहा था, तभी अचानक देखा कि लड़की गायब, मैं चकित हुआ, चारों तरफ देखा, कहीं नजर न आए, घबरा सा गया, लड़की कहां चली गई..तभी देखता हूं कि आगे पतला सा सांप लहराता हुआ चल रहा था।


पहली बार देखा कि भूत किस तरह से रूप भी बदल सकते हैं, कभी अच्छे लगते हैं तो कभी डरावने, आखिर ऐसा इनमें क्या है, खैर जैसे-तैसे उसे सड़क तक छोड़ा और अनमना सा
लौटने लगा, तभी देखता हूं कि एक छोटी सी चिड़िया मेरे कंधे पर आकर बैठ गई, बड़ी प्यारी सी चिड़िया, उसे साथ लेकर आ गया, दादी को भी बताया कि ये चिड़िया रास्ते में मिल गई, उस चिड़िया के साथ खेलता रहा।

रात गहरा गई थी, अंधेरा चारों ओर पसर चुका था, चमगादड़ की डरावनी आवाजें हवा में कभी-कभी तैर जाती थी तो ये चिड़िया भी कभी-कभी चहचहाने लगती। रात को लेटा, तो देखा बगल में वो लड़की भी लेटी हुई है। समझ में नहीं आ रहा था कि ये लड़की क्या करके मानेगी। धीरे से उठ खड़ी हुई और इशारे से बुलाने लगी, मैं भी चुपचाप कुएं की ओर उसके साथ चलने लगा। वहीं पहुंचे..जहां एक समाधि थी, उस समाधि के पीछे पहुंचते हुए, अचानक ही हल्की सी रोशनी जगमगाने लगी और सनसनाती हवा मन को डरा रही थी, वो लड़की बार-बार मुस्कराती और बोलती डरो नहीं, बिलकुल सुरक्षित हो, अभी देखों में आपको क्या दिखाती हूं..

इतना कहना था कि देखा कई सांप लहराते हुए तेजी से हमारे आसपास मंडराने लगे हैं..देखते ही देखते सांप हवा में उछलने लगे, मुझे काटो तो खून नहीं, ऐसे सांप मैंने कभी देखे नहीं, यही नहीं पेड़ पर बैठे एक उल्लू की आंखों ने तो मेरी जान ही निकाल दी, वाकई ये कितनी भुतहा जगह, मेरे दांत कटकटाने लगे, बीच-बीच में चमकती रोशनी, सांपों की भयावता और पेड़ पर बैठा उल्लू, शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इस रात क्या होने वाला है, मुझे भी नहीं मालूम, कल का इंतजार का करिए....ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com