अगले दिन अब उन दोनों युवक और युवती भूत की बारी थी..जैसे ही दूसरा भूत इधर-उधर मंडराता नजर आया..इन दोनों युवक-युवती भूत ने उसे बुलाया और बातचीत के बहाने पेड़ के पास ले गया..देर रात तक उस भूत को उलझाकर रखा गया..कई बार भूत ने जाने का मन बनाया लेकिन अपनी लच्छेदार बातों में उसे फंसाए रखा ताकि ये भूत आज निकल कर भागने न पाए।
इधर पुजारी रात को अपनी तंत्र-मंत्र की सामग्री लेकर मौके पर रवाना हुए..दादा जी भी साथ में थे..एक दिन पहले की तरह आधी रात को अनुष्ठान शुरू हुआ। पुजारी जी जोर-जोर से मंत्रोच्चारण करने लगे। पूरी हवा में अलग ही माहौल पैदा हो गया। लगा जैसे भूकंप से पहले के हालात है..तेज हवाओं के झौंके..पत्तियों की सरसराहट..आसमान में कड़कती बिजली..खासा डरावना माहौल बना रही थी..दादी जी चारों ओर नजर डाल रहे थे कि कब वो भूत सामने आएगा। भूत तो नहीं आया... देखते हैं कि सामने से एक काला नाग चला आ रहा था..बेहद ही बड़ा..हष्ट-पुष्ट और डरावना...सरसराता हुआ पूजा स्थल के समीप फन उठा के खड़ा हो गया। उसके अगल-बगल में ही दो और सांप कुंडली मारकर बैठ गए। दादा जी की हालत खराब..भूत आने वाले थे..आज अचानक ये तब्दीली कहां से आ गई। भयानक से सांप रात को फन फैलाए बैठे हैं..दादा जी को लगा कि पुजारी मंत्रों में तल्लीन हैं और उन्हें पता ही नहीं है कि सामने क्या हो रहा है। दादा जी लगातार पुजारी जी का मुंह ताके जा रहे कि कब वो उन्हें देखें और इशारे से बताएं कि पहले इन सांपों से निपटा जाए..नहीं तो अभी काम तमाम हो जाएगा।
इधर सांप फन ऊपर नीचे कर रहे थे..उधर पुजारी जी की आवाज और तेज होती जा रही थी...अचानक ही पुजारी ने हाथ में जल लिया और फिर जोर-जोर से मंत्र पढ़ना शुरू किया..कुछ देर मंत्र पढ़ने के बाद अचानक वो जल उन्होंने सामने फेंका..वहीं जहां ये सांप बैठे हुए थे..तभी देखता हूं कि धुआं से फैल रहा है..उस धुएं में सांप नजर ही नहीं आ रहे हैं। धुआं जमीन से ऊपर उठता हुआ आसमान में चारों और फैलने लगा। जैसे ही धुआं छटा तो देखता हूं कि तीन आकृतियां उभर रही हैं..दो को तो दादा जी पहचान गए..ये आकृति कल वाली ही थीं..लेकिन ये तीसरी आकृति अनजान थी। गोल-मटोल चेहरा..लंबा-चौड़ा नौजवान उन दोनों के बीच खड़ा हुआ था।
पुजारी जी ने मुंडी हिलाकर इशारा किया तो तीनों उनकी ओर आने लगे..कुछ ही देर में सामने आकर खड़े हो गए..अब पुजारी जी ने उन्हें बैठने का इशारा किया तो बैठ गए। पूरे इलाके में घोर शांति..सूनसान..कोई आवाज नहीं। कुछ पलों के सन्नाटे के बाद फिर पुजारी ने सिर उठाया और उस बीच वाले नौजवान से कहा कि तुम यहां कैसे भटक रहे हो..लेकिन वो बोलने को तैयार न हो..उसे लगा कि जैसे कहीं फंस गया हो..कभी अपने अगल बगल में दोनों को देखता तो कभी पुजारी जी और कभी दादा जी को..उसे समझ नहीं आ रहा था कि यहां क्या हो रहा है और उसे क्यों बुलाया गया है..पुजारी जी के बार-बार बोलने पर जब चुपचाप रहा तो पुजारी की आंखें लाल हुईं...चेहरे पर गुस्सा तमतमा गया..बोले..अब तुम हमारे कब्जे में हो..जैसा मैं कहता जाऊं..मानते जाओ..नहीं तो तुम्हारा हश्र बुरा होगा...इतना कहना था कि नौजवान थोड़ा सहमा..और उसने जो कुछ बताया..वो और भी चौंकाने वाला था..आखिर ऐसा क्या बताया उसने..इन तीनों का बाद में क्या हुआ...कल का इंतजार करिए।
इधर पुजारी रात को अपनी तंत्र-मंत्र की सामग्री लेकर मौके पर रवाना हुए..दादा जी भी साथ में थे..एक दिन पहले की तरह आधी रात को अनुष्ठान शुरू हुआ। पुजारी जी जोर-जोर से मंत्रोच्चारण करने लगे। पूरी हवा में अलग ही माहौल पैदा हो गया। लगा जैसे भूकंप से पहले के हालात है..तेज हवाओं के झौंके..पत्तियों की सरसराहट..आसमान में कड़कती बिजली..खासा डरावना माहौल बना रही थी..दादी जी चारों ओर नजर डाल रहे थे कि कब वो भूत सामने आएगा। भूत तो नहीं आया... देखते हैं कि सामने से एक काला नाग चला आ रहा था..बेहद ही बड़ा..हष्ट-पुष्ट और डरावना...सरसराता हुआ पूजा स्थल के समीप फन उठा के खड़ा हो गया। उसके अगल-बगल में ही दो और सांप कुंडली मारकर बैठ गए। दादा जी की हालत खराब..भूत आने वाले थे..आज अचानक ये तब्दीली कहां से आ गई। भयानक से सांप रात को फन फैलाए बैठे हैं..दादा जी को लगा कि पुजारी मंत्रों में तल्लीन हैं और उन्हें पता ही नहीं है कि सामने क्या हो रहा है। दादा जी लगातार पुजारी जी का मुंह ताके जा रहे कि कब वो उन्हें देखें और इशारे से बताएं कि पहले इन सांपों से निपटा जाए..नहीं तो अभी काम तमाम हो जाएगा।
इधर सांप फन ऊपर नीचे कर रहे थे..उधर पुजारी जी की आवाज और तेज होती जा रही थी...अचानक ही पुजारी ने हाथ में जल लिया और फिर जोर-जोर से मंत्र पढ़ना शुरू किया..कुछ देर मंत्र पढ़ने के बाद अचानक वो जल उन्होंने सामने फेंका..वहीं जहां ये सांप बैठे हुए थे..तभी देखता हूं कि धुआं से फैल रहा है..उस धुएं में सांप नजर ही नहीं आ रहे हैं। धुआं जमीन से ऊपर उठता हुआ आसमान में चारों और फैलने लगा। जैसे ही धुआं छटा तो देखता हूं कि तीन आकृतियां उभर रही हैं..दो को तो दादा जी पहचान गए..ये आकृति कल वाली ही थीं..लेकिन ये तीसरी आकृति अनजान थी। गोल-मटोल चेहरा..लंबा-चौड़ा नौजवान उन दोनों के बीच खड़ा हुआ था।
पुजारी जी ने मुंडी हिलाकर इशारा किया तो तीनों उनकी ओर आने लगे..कुछ ही देर में सामने आकर खड़े हो गए..अब पुजारी जी ने उन्हें बैठने का इशारा किया तो बैठ गए। पूरे इलाके में घोर शांति..सूनसान..कोई आवाज नहीं। कुछ पलों के सन्नाटे के बाद फिर पुजारी ने सिर उठाया और उस बीच वाले नौजवान से कहा कि तुम यहां कैसे भटक रहे हो..लेकिन वो बोलने को तैयार न हो..उसे लगा कि जैसे कहीं फंस गया हो..कभी अपने अगल बगल में दोनों को देखता तो कभी पुजारी जी और कभी दादा जी को..उसे समझ नहीं आ रहा था कि यहां क्या हो रहा है और उसे क्यों बुलाया गया है..पुजारी जी के बार-बार बोलने पर जब चुपचाप रहा तो पुजारी की आंखें लाल हुईं...चेहरे पर गुस्सा तमतमा गया..बोले..अब तुम हमारे कब्जे में हो..जैसा मैं कहता जाऊं..मानते जाओ..नहीं तो तुम्हारा हश्र बुरा होगा...इतना कहना था कि नौजवान थोड़ा सहमा..और उसने जो कुछ बताया..वो और भी चौंकाने वाला था..आखिर ऐसा क्या बताया उसने..इन तीनों का बाद में क्या हुआ...कल का इंतजार करिए।