Tuesday, October 13, 2015

भूत की कहानी का 82 वां दिन(कौन थी वो बुढ़िया?)

दादी कहानी आगे बढ़ा रही थीं..एक बार पास के ही गांव में अपने रिश्तेदार के यहां पहुंचे, उनके यहां कोई कार्यक्रम था, वहां रिश्तेदारों से बातचीत में पता चला कि ऐसी ही बुढ़िया इस गांव में रहती थी और उसका एक बच्चा भी गायब हुआ था..रिश्तेदारों को थोड़ी-बहुत जानकारी थी..दादी ने कहा..मुझे लगा कि वो बुढ़िया कई दिनों से दिखाई नहीं दी है..क्यों न उससे मिल लिया जाए..हाल-चाल पूछ लिए जाएं..उसका बेटा मिला है या नहीं।

ये सोचकर पता करते-करते उस बुढ़िया के घर पहुंच गए। एक अनजान महिला को देखकर उसके घर वाले आश्चर्य में पड़ गए और जब मैंने बुढ़िया के बारे में पूछा तो वो मुझे अजीब सी निगाहों से देखने लगे..यही नहीं आसपास बैठे परिवार के सदस्यों का मुंह ताकने लगा। उनमें से एक शख्स बुढ़िया का बेटा था..जब मैंने पूछा कि आप मुझे ऐसे क्यों देख रहे हैं..वो बुढ़िया कहां हैं..मैं वैसे ही हालचाल पूछने आई थी। उसके बेटे ने मुझसे कहा कि आप कब मिली थीं बुढ़िया से..तो मैंने बताया कि अभी कुछ ही महीने हुए होंगे..वो तो हमारी हवेली में अक्सर आती हैं..पानी..भोजन कर चली जाती हैं और कहती हैं कि बेटे की तलाश कर रही हैं..
बेटे ने लंबी सांस ली और मुझे बताया कि बुढ़िया दो साल पहले ही खत्म हो चुकी है। ये बात सच है कि हमारा सबसे छोटा भाई लापता हो गया था..पता ही नहीं चला कि वो कहां गया..किसी ने अपहरण किया..या उसने सुसाइड किया या फिर किसी ने हत्या कर दी..या फिर वो कहीं चला गया...कुछ भी पता नहीं चला..बड़ा ही रहस्यमय ढंग से वो जो गायब हुआ तो आज तक उसका पता नहीं है। बेटे के गम में मां का जीना मुश्किल हो गया..सबसे छोटा था इसलिए और भी ज्यादा दुलार था..खाना-पीना छोड़ दिया..बीमार रहने लगी और कुछ ही महीनों में उनकी मौत हो गई। बेटे को भी ताज्जुब था कि वो बुढ़िया भूत बनकर अब भी बच्चे की तलाश में घूम रही है।
दादी भी पूरी कहानी सुनकर हैरान रह गई..एक बुढ़िया महीनों से उनके यहां आ रही थी..और ये पता ही नहीं चला कि वो भूतनी है। उसकी दर्दनाक दास्तान सुनकर वो भावनाओं में बहती रही और उसके गांव तक ही नहीं घर तक आ गईं। दादी का कहना था कि वो वापस गांव से हवेली लौटीं। एक दिन वो बुढ़िया फिर हवेली आई..लेकिन जैसे ही मैंने उसके घर जाने की बात कही..तो उसकी आंखों में आंसू आ गए..और बोली.अब आपको पता चल गया है कि मैं कौन हूं तो आज के बाद आप मुझे नहीं देख पाओगी..इतना कहते ही हवा का एक झौंका आया...जब तक हमने तेज हवा के कारण आंखें बंद की..देखा कि बुढ़िया गायब हो चुकी थी और उस दिन के बाद वो कभी नजर नहीं आई....कल एक और हैरत अंगेज कहानी सुनाएंगी..दादी..ऐसा उनका वादा है..कल का इंतजार करिए.....देखिए www.bhootworld.com







Thursday, October 1, 2015

भूत की कहानी का 81 वां दिन(वो बुढ़िया कौन थी?)

रात होते ही फिर दादी के पास बैठ गया भूत की नई कहानी के लिए...दादी बोली..ये भी सच्ची कहानी है और उन्होंने खुद अनुभव की है। इस हवेली के न जानी कितने किस्से-कहानियां जेहन में बसे हुए हैं। सालों पहले की बात है..हवेली के सामने से ही रोज कई लोग गुजरते हैं जो पास के गांवों से यहां अपने काम के लिए आते हैं। अपना गांव बड़ा है जबकि आसपास छोटे-छोटे गांव हैं।


एक दिन एक बुढ़िया हवेली के पास खड़ी थी..हवेली की ओर बड़ी ही हसरत से देख रही थी। मैंने उससे पूछा कि क्या बात है..तो बोली कुछ नहीं...क्या पानी के लिए पानी मिलेगा। मैंने कहा क्यों नहीं..लाठी के सहारे धीरे-धीरे चलती वो बुढ़िया हवेली के भीतर आई..और पानी पिलाया। मैंने उससे पूछा कि किस गांव की हो..और यहां क्यों आना हुआ...आसमान की ओर ताकती बुढ़िया चुप हो गई..जब बार-बार पूछा तो बमुश्किल बोली..आप जानकर क्या करेंगी..घर में कौन-कौन है..इस पर भी बुढ़िया टालती रही। मैंने कहा-कुछ खाओगी..तो पहले तो मना किया और आग्रह करने पर भोजन को तैयार हो गई। हम ये देखकर दंग रह गए..कि बुढ़िया का जितना शरीर नहीं था..उससे कई गुना वो भोजन कर गई। मुझे लगा कि कई दिनों से भूखी होगी..मन प्रसन्न हो रहा था कि किसी भूखे-प्यासे को भोजन-पानी करा दिया। बुढ़िया आशीष देती हुई धीरे-धीरे लाठी लिए निकल गई।

कुछ दिनों बाद वो बुढ़िया फिर हवेली के बाहर नजर आई। अब ये सिलसिला शुरू हो गया। कभी-कभी वो बुढ़िया खुद ही आ जाती और कभी पानी कभी भोजन कर चली जाती। बार-बार पूछने पर कुछ नहीं बताती। न तो अपने परिवार के बारे में..न ही अपने काम के बारे में। टालने के अंदाज में रहती। ज्यादा बात करने से कतराती। मैं भी सोच रही थी कि बुढ़िया की अपनी जिंदगी है..अपने को क्या लेना-देना। किसी को पानी-भोजन कराने से पुण्य ही मिलता है।
जब कई महीने हो गए.. तो उस बुढ़िया का कुछ मुंह खुला..एक बार उसने बता ही दिया कि पास के गांव की रहने वाली है। उसके चार बेटे हैं और एक बेटी है। सभी की शादी हो चुकी है और उसके पति भी काफी बुजुर्ग हैं। सभी उसी गांव में रहते हैं। खेती-बाड़ी से घर का गुजारा चलता है। वो इस गांव क्या करने आती है तो बोली...कुछ ही महीने पहले उसका सबसे छोटा बेटा गुम हो गया है। उसे तलाशने के लिए भटक रही है। उस वक्त फोटो नहीं हुआ करते थे। बुढ़िया ने बेटे का हुलिया बताया और कहा कि यदि इस तरह का कोई बच्चा कभी मिले तो उसके बारे में जरूर बताना। मेरा मन भी बुढ़िया की कहानी सुनकर व्यथित हो गया। इस उम्र में बच्चा गुम होने का दर्द एक मां ही अच्छे से समझ सकती है। मुझे भी लगा कि उसके बच्चे को तलाश करने में सहयोग करना चाहिए। मैंने भी इधर-उधर उस बुढ़िया की कहानी लोगों को बतानी शुरू की और कहा कि यदि किसी को उस बच्चे का पता चले तो मुझे जरूर बताए। महीनों बीतते गए..वो बुढ़िया मिलती रही लेकिन हर बार उसके चेहरे पर एक अजीब सी मायूसी और दर्द झलकता नजर आया..लेकिन बच्चा नहीं मिला।

आखिर ये बुढ़िया कौन थी..इसका बच्चा मिला या नहीं..क्या है इस बुढ़िया का राज और इसके बच्चा गुम होने का..कल का इंतजार करिए।now see.....www.bhootworld.com

Tuesday, September 29, 2015

भूत की कहानी का 80 वां दिन(कहां गायब हो गई मंडली?)

दादी कहानी सुनाती जा रही थी कि किस तरह उन्हें भक्तों की रहस्यमय टोली रास्ते में मिली..और मंदिर तक पहुंच गई। यही नहीं बाकायदा धर्मशाला में उसी जगह ठहरी..जहां हम लोग ठहरे थे। उनके हाव-भाव और शारीरिक बनावट से हमें डरे-सहमे हुए थे कि ये लोग आम इंसान तो कतई नहीं..खैर रात हुई..रात को पूरे मंदिर की सजावट से पूरा इलाका जगमगा रहा था..चारों तरफ रोशनी बिखरी हुई थी और भक्तों का हुजूम उमड़ रहा था। रात को भजन-कीर्तन का दौर शुरू हुआ तो देखा कि वही मंडली मंच पर विराजमान है..और उनके जोश-खरोश को देखकर सब लोग वाह-वाह कर रहे थे। दादी का कहना था लेकिन हमारे मन में संदेह के बादल मंडरा रहे थे।

सुबह होने तक ये सब चला। सुबह हुई तो वही मंडली फिर बगले के कमरे में पहुंची..हम लोग भी अपने कमरे में पहुंचे। दादी का कहना था कि उनसे रहा नहीं गया और जैसे ही कमरे के बाहर कुछ सदस्य मिले तो उनसे बातचीत करने लगी..पूछा..आप लोग कहां से आए हो..तो मंडली ने दादी के ही गांव का नाम लिया। दादी बोली..आप हमें जानते हैं..तो बताया कि हम आपके बारे में जानते हैं। आप लोग कहां रहते हैं..तो बोले..हम हम एक जगह नहीं रहते..हमारा काम ही यही है..बस ईश्वर की भक्ति में लीन रहना..कोई एक ठिकाना नहीं..जब जहां कोई कार्यक्रम होता है..पहुंच जाते हैं..हमें कोई बुलाता नहीं..हम खुद जाते हैं और भजन-कीर्तन कर लौट आते हैं..इसके बदले किसी से कुछ लेते नहीं। यदि कोई भजन-कीर्तन में कुछ चढ़ाता भी है तो उसी मंदिर या पूजा स्थल पर भेंट कर देते हैं। आप लोगों का जीवन-यापन कैसे चलता है..इस पर जवाब मिलता..सब ईश्वर की कृपा है..उसी ने हमें बनाया है..वही बनाता है..वही बिगाड़ता है और वही जीवन चलाता है। जब उनसे बार-बार जोर देकर पूछा कि कोई तो ठिकाना होगा..जहां आप लोग रहते होगे..तब मंडली ने बताया कि गांव का जो किला है..वहीं पास में हमारा ठिकाना है..और पूरे गांव को मालूम था कि किले में भूता का डेरा है और इसीलिए उसे भूतिया किला भी कहा जाता है। इतना कहने के बाद मंडली ने हमसे पीछा छुड़ा लिया।
हम पक्का यकीन हो चला था कि ये वाकई भूतों की मंडली है और कोई नहीं। फिर वही हुआ..थोड़ी ही देर बाद हमारी बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी..और जैसे ही आगे बढ़े..देखते हैं कि फिर वही मंडली भजन-कीर्तन करते हुए चली जा रही है। हम लोगों का रात भर जागने से थकान के मारे बुरा हाल था लेकिन मंडली में वही उत्साह..वहीं उमंग...जैसे आते वक्त मिले थे..जैसे रात भर भजन-कीर्तन करते रहे..वैसे ही अभी नजर आ रहे थे..रास्ते में उछलते हुए..मस्त होकर भजन गाते हुए...रास्ते भर कहीं नजर आते..कहीं गायब हो जाते...हम लोगों पर नजर पड़ी..तो उनके हाव-भाव पर मुस्कराहट दिखी..गांव आते-आते वो मंडली कहां गायब हुई..पता नहीं चला..और गांव वालों से खूब पता किया लेकिन ऐसी किसी मंडली को न तो किसी ने कभी बुलाया था और न ही किसी ने सुना था। दादी ने कहा कि ये मंडली शिवरात्रि पर्व के वक्त इस रास्ते पर कई लोगों को नजर आई और कई सालों तक नजर आई। दादी की ये कहानी तो खत्म हुई...कल एक नई कहानी होगी..कल का इंतजार करिए.....now see.....www.bhootworld.com