दादी कहानी सुनाती जा रही थी कि किस तरह उन्हें भक्तों की रहस्यमय टोली रास्ते में मिली..और मंदिर तक पहुंच गई। यही नहीं बाकायदा धर्मशाला में उसी जगह ठहरी..जहां हम लोग ठहरे थे। उनके हाव-भाव और शारीरिक बनावट से हमें डरे-सहमे हुए थे कि ये लोग आम इंसान तो कतई नहीं..खैर रात हुई..रात को पूरे मंदिर की सजावट से पूरा इलाका जगमगा रहा था..चारों तरफ रोशनी बिखरी हुई थी और भक्तों का हुजूम उमड़ रहा था। रात को भजन-कीर्तन का दौर शुरू हुआ तो देखा कि वही मंडली मंच पर विराजमान है..और उनके जोश-खरोश को देखकर सब लोग वाह-वाह कर रहे थे। दादी का कहना था लेकिन हमारे मन में संदेह के बादल मंडरा रहे थे।
सुबह होने तक ये सब चला। सुबह हुई तो वही मंडली फिर बगले के कमरे में पहुंची..हम लोग भी अपने कमरे में पहुंचे। दादी का कहना था कि उनसे रहा नहीं गया और जैसे ही कमरे के बाहर कुछ सदस्य मिले तो उनसे बातचीत करने लगी..पूछा..आप लोग कहां से आए हो..तो मंडली ने दादी के ही गांव का नाम लिया। दादी बोली..आप हमें जानते हैं..तो बताया कि हम आपके बारे में जानते हैं। आप लोग कहां रहते हैं..तो बोले..हम हम एक जगह नहीं रहते..हमारा काम ही यही है..बस ईश्वर की भक्ति में लीन रहना..कोई एक ठिकाना नहीं..जब जहां कोई कार्यक्रम होता है..पहुंच जाते हैं..हमें कोई बुलाता नहीं..हम खुद जाते हैं और भजन-कीर्तन कर लौट आते हैं..इसके बदले किसी से कुछ लेते नहीं। यदि कोई भजन-कीर्तन में कुछ चढ़ाता भी है तो उसी मंदिर या पूजा स्थल पर भेंट कर देते हैं। आप लोगों का जीवन-यापन कैसे चलता है..इस पर जवाब मिलता..सब ईश्वर की कृपा है..उसी ने हमें बनाया है..वही बनाता है..वही बिगाड़ता है और वही जीवन चलाता है। जब उनसे बार-बार जोर देकर पूछा कि कोई तो ठिकाना होगा..जहां आप लोग रहते होगे..तब मंडली ने बताया कि गांव का जो किला है..वहीं पास में हमारा ठिकाना है..और पूरे गांव को मालूम था कि किले में भूता का डेरा है और इसीलिए उसे भूतिया किला भी कहा जाता है। इतना कहने के बाद मंडली ने हमसे पीछा छुड़ा लिया।
हम पक्का यकीन हो चला था कि ये वाकई भूतों की मंडली है और कोई नहीं। फिर वही हुआ..थोड़ी ही देर बाद हमारी बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी..और जैसे ही आगे बढ़े..देखते हैं कि फिर वही मंडली भजन-कीर्तन करते हुए चली जा रही है। हम लोगों का रात भर जागने से थकान के मारे बुरा हाल था लेकिन मंडली में वही उत्साह..वहीं उमंग...जैसे आते वक्त मिले थे..जैसे रात भर भजन-कीर्तन करते रहे..वैसे ही अभी नजर आ रहे थे..रास्ते में उछलते हुए..मस्त होकर भजन गाते हुए...रास्ते भर कहीं नजर आते..कहीं गायब हो जाते...हम लोगों पर नजर पड़ी..तो उनके हाव-भाव पर मुस्कराहट दिखी..गांव आते-आते वो मंडली कहां गायब हुई..पता नहीं चला..और गांव वालों से खूब पता किया लेकिन ऐसी किसी मंडली को न तो किसी ने कभी बुलाया था और न ही किसी ने सुना था। दादी ने कहा कि ये मंडली शिवरात्रि पर्व के वक्त इस रास्ते पर कई लोगों को नजर आई और कई सालों तक नजर आई। दादी की ये कहानी तो खत्म हुई...कल एक नई कहानी होगी..कल का इंतजार करिए.....now see.....www.bhootworld.com
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