Thursday, March 19, 2015

भूत की कहानी का 17 वां दिन (मैं भी भूत बन गया?)

सुबह हुई तो जल्दी-जल्दी पूरे परिवार के जाने की तैयारी हुई..सुबह 9 बजे हम लोग मय सामान के बस स्टैंड की ओर रवाना हुए..मैं और दादी तो छोड़ने आए थे. देखता हूं कि साथ में पीछे-पीछे वो लड़की भी चली आ रही है जो केवल मुझे ही दिख रही थी..बाकी किसी की निगाह उसकी ओर नहीं थी...बस पर सामान चढ़ा दिया गया..और थोड़ी ही देर में जैसे ही बस रवाना हुई..मुझे रोना आ गया..छोटा सा बच्चा..हिम्मत तो कर ली थी..लेकिन माता-पिता..भाई बहनों से पहली बार इतनी कम उम्र में बिछुड़ने का मतलब थोड़ी ही देर में समझ में आ गया था..गुमसुम सा दादी के साथ हवेली की ओर लौट रहा था..और मेरे बगल में वो लड़की भी चली आ रही थी..हवेली आते ही दादी ने प्यार से बिठाया और तरह-तरह की चीजें खाने के लिए देने लगीं..आज भी सोचता हूं वो नौ साल की उम्र का फैसला तो तन-बदन सिहर उठता है..ऊपर से उस लड़की की अजब-गजब माया...धीरे-धीरे सब पन्ने खुलेंगे।



मैंने दादी को कुछ भी खाने को मना किया और बोला कि मैं कुएं की ओर जा रहा हूं...दादी ने पहले तो मना किया..फिर बोली...खेत पर काम करने वाले नौकर के साथ भेजती हूं..जो बस स्टैंड पर सामान रखकर लौटा था..दरअसल वो लड़की इशारे-इशारे ही में मुझे कुएं की ओर चलने को कह रही थी..जैसे ही हम हवेली के गेट के बाहर निकले..तो देखता हूं..एक तरफ वो सांप चल रहा है..जो उस लड़की के साथ चलता है...इस सांप का रहस्य भी समझ में नहीं आ रहा था...जैसे ही कुएं के पास पहुंचे..लड़की ने न जाने क्या जादू किया..नौकर पत्थर पर बैठा ऊंघने लगा..और लड़की मुझे ले गई उसी समाधि के पीछे...वहां पहुंचते ही लड़की बोली...डरना मत..कुछ रहस्य आज मैं आपको बताती हूं...और परिवार से बिछड़ने का गम मत बनाओ...मैं आपके साथ हूं..कोई परेशानी नहीं आने दूंगी..इतना कहकर हम दोनों बैठ गए..लड़की ने बताना शुरू किया...मैं वाकई आपकी पत्नी हूं...नहीं भरोसा होता तो अभी दिखाती हूं...इतना कहते ही अचानक से धूल का गुबार सा उड़ा..लड़की गायब..धूल का गुबार शांत हुआ..देखा कि एक युवती सामने खड़ी है..साड़ी में..गोरी सी...सुंदर सी...अजीब से आभा मंडल...देखता ही रह गया..वो छोटी सी लड़की..ये युवती..हे भगवान..ये क्या हो रहा है...मैं खुद को देखता कि इससे पहले मुझे नींद सी आने लगी..आंखें बंद हो चुकी थी..और ऐसा लग रहा था कि आसमान में हौले-हौले उड़ रहा हूं...पता नहीं कहां जा रहा है...थोड़ी ही देर में जब आंखें खुलीं...और खुद की ओर देखा तो समझ में नहीं आया कि मेरा ये रूप भी हो सकता है...भरा-पूरा युवक..लंबा चौड़ा...काया बदल चुकी थी..कभी मैं उस युवती को देख रहा हूं..कभी खुद को युवक के रूप में....

युवती मुस्कराई..दरअसल अपना मूल रूप यही है...ऐसे तुम थे..ऐसे मैं थी...अब समझ में आया कि हम वाकई पति-पत्नी थी...कुछ ही दिन शादी को हुए थे...कि न तुम रहे..न हम रहे...अब तो मैं उसकी बातों को देखकर डरने लगा..लगा कि बेहोश हो जाऊंगा...चक्कर आते-आते मैं गिर सा गया..और जब मुझे होश आया तो देखा कि मैं हवेली में था..उसी रूप में बच्चे की तरह..जैसे हवेली से चला था....नौकर दादी को बताए जा रहा था..कि मैं पत्थर पर क्या बैठा...ये साहब गायब हो गए..और मिले समाधि के पीछे..जहां आंखें बंद किए बैठे हुए थे..दरअसल इन्हें माता-पिता के जाने का गम सता रहा था..दादी फिर समझाने लगी कि बेटा..अभी मन लगने लगेगा..कल स्कूल जाना है जहां तुम्हारा दाखिला हो जाएगा..फिर पढ़ाई शुरू हो जाएगी..चिंता मत करो..आ जाओ..यहां चारपाई पर लेट जाओ...अब मैं दादी को क्या बताऊं..कि उस लड़की ने आज मुझे क्या दिखाया..और कैसा बन गया..वो लड़की तो पूरी रहस्यमयी है....इतना कहकर मैं दादी के साथ चारपाई पर लेट गया..और पूछने लगा कि दादी बताओ..भूत-प्रेत होते हैं क्या..दादी बोली..हां बेटा..होते हैं..लेकिन अकारण किसी को परेशान नहीं करते..जिनसे उनका वास्ता होता है..उन्हीं को परेशान करते हैं..या फिर उनकी मदद करते हैं...फिर मैंने दादी से पूछा कि क्या आपने भूत देखे हैं..हवेली और खेत के पास भी भूत हैं..बोली..बेटा डरो मत..भूत तो हर जगह होते हैं..हवेली में भी दिखे हैं और खेत में...लेकिन डरो मत..मैं किस्सा सुनाने की जिद कर रहा था..दादी डरने की वजह से मुझे मना कर रही थीं...जिद करने पर भी उन्होंने कहानी नहीं सुनाई..और बगल में चिपकाकर लेट गई..थोड़ी ही देर में मुझे नींद लग गई...आज की रात क्या होगा...क्या वो लड़की कुछ और गुल खिलाएगी..दादी भी क्या-क्या खुलासा करेंगी...कल का इंतजार करिए.....ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com