Monday, August 17, 2015

भूत की कहानी का 51वां दिन(पेड़ के पीछे से पैर किसका निकला था?)

भूतों की दुनिया में दिन रात रहने की आदत हो जाए और ये किस्सा सुनकर मन मान जाए..ऐसा हो नहीं सकता था..जैसे ही रामू ने बताया कि कुएं के पास बनी समाधि से अजीब सी आवाज कभी-कभी गूंजती है तो मन नहीं माना..और शाम को बाहर खेलने के बहाने से उस समाधि के पास पहुंच गया..लेकिन जिस तरह भूतिया किले में मुझे डर नहीं लगता था..उस तरह समाधि के पास जाते वक्त निश्चिंत नहीं था..

जैसे-जैसे कुएं के पास पहुंचने लगा..डर लगने लगा..अचानक से लगा कि कोई मेरे ऊपर ही आवाज कर रहा है..डर के मारे बुरा हाल हो गया..डरते-डरते जैसे ही ऊपर नजर डाली तो देखा कि छोटी सी चिड़िया चहचहाते हुए ऊपर से निकली दूर जा रही है...डर खत्म हो गया और हंसी आ गई..लेकिन मन घबरा जरूर रहा था..धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था..जैसे ही समाधि के पास पहुंचने लगा. कदम धीमे होते चले गए..देखा..चारों तरफ सूनसान..कोई नजर नहीं आ रहा..आगे बढ़ता गया...कुएं के पास पहुंचा ही था कि लगा कि समाधि के पास ही पेड़ के पीछे से एक पैर निकला हुआ..अकेला पैर..किसका होगा..पैर कुछ देर शांत था..लेकिन गौर से देखा तो उसमें कभी-कभी थोड़ी हलचल हो रही थी...ये पैर किसका है..अकेला पैर..क्या यही भूत है समाधि वाला..वही थम गया..पैर पर नजरें टिक गईं..तभी लगा कि दूसरे पैर की उंगलियां भी नजर आ रही हैं..
पक्का लगने लगा कि यही है भूत जो समाधि के पास पेड़ के पीछे है..एक जगह थमके सांस रोककर एकटक पेड़ पर ही नजर टिक गई..बड़ी देर तक टकटकी लगाए देखता रहा..अब कोई हलचल नहीं हो रही थी..तभी लगा कि एक हाथ भी दिख रहा है..और पैर गायब है..हे भगवान..ये क्या हो रहा है..कभी पैर नजर आ रहा है..कभी हाथ...आदमी कोई है नहीं...हालत खराब होती जा रही थी...बड़ी देर तक ये हाथ-पैर की हलचल को नापने की कोशिश की..लेकिन डर घटने के बजाए बढ़ता जा रहा था...पेड़ पर आंखें थी तभी अचानक जोर की आवाज आई और मैं उछल कर गिरते-गिरते बचा..इस आवाज ने तो दम ही निकाल दिया था..आवाज पीछे से आई थी..जैसे ही पीछे नजर गई तो देखा कि गाय रंभाते हुए चली आ रही है..
अब तक सब्र जवाब दे चुका था..हिम्मत नहीं बची थी..पीछे लौटने का निश्चय कर लिया लेकिन चलते-चलते फिर उसी पेड़ पर नजर जा रही थी..जैसे ही उलट कर फिर देखा तो अबकी बार भागने का कोई चारा नहीं बचा था..पूरा पैर पेड़ से बाहर निकला हुआ था..लगा कि ये पैर इतना बड़ा हो गया..और न जाने कितना होगा..ऐसा सरपट भागा..हवेली की ओर...कि पीछे मुड़ने का नाम नहीं लिया..हांफते-हांफते हवेली पहुंचा तो दादी देखकर डर गई..पूछने लगी कि क्या हुआ..मैंने बोला..कुछ नहीं..हवेली के बाहर बड़ा सा सांप था..देखकर भागा हूं..दादी मुस्कराने लगी..बेटा..ऐसे सांप तो यहां निकलते ही रहते हैं...कोई बात नहीं...लेकिन मन में सांप नहीं वो पैर नजर आ रहा था...आवाज तो कोई नहीं आई..लेकिन ये पैर किसका है...ये सवाल रह-रह कर मन में घूम रहा था..आपके मन में भी घूम रहा होगा...कल का इंतजार करिए......
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