Monday, March 2, 2015

भूत की कहानी का पहला दिन (घबराहट तो अब शुरू हो रही है)

साल-1978..यूपी का जिला ललितपुर..गांव-बानपुर..आबादी चार-पांच हजार..मेरी उम्र रहेगी करीब नौ साल..मेरा पैतृक गांव..गर्मियों की छुट्टियां हों या दीवाली..हमारे पिता पूरे परिवार के साथ गांव बानपुर जरूर जाते..गांव जहां खत्म होता था वहीं से हमारे घर की दीवार शुरू होती थी..घर पूरी हवेली जैसा..दिल्ली के एक छोटा प्राइवेट अपार्टमेंट जितनी जगह..हवेली में एक किनारे से लेकर पीछे तक और दूसरे किनारे से पीछे तक कमरों की कतारें..और पीछे की ओर कमरों के ऊपर कमरे..जिन्हें पुराने जमाने में अटारी बोलते थे..ऊपर छप्पर..नीचे गोबर से लिपा हुआ फर्श..जो गांव गए होंगे उन्हें मालूम होगा..करीब एक दर्जन कमरों और अटारी से भरी-पूरी हवेली..बीच में एक बड़ा सा आंगन..इतना बड़ा कि आप क्रिकेट का मैच खेल लो..और उसके बाद पत्थर से आधे शरीर तक नजर आने वाली बाऊंड्री..बाऊंड्री के बाद फिर दोनों और मैदान जिसमें पेड़-पौधे लगे हुए...और बीच से जाने का रास्ता..बड़ा सा लोहे का गेट..चारों और पक्की दीवार से घिरी ये हवेली..दिन भर कोई सफाई करे तो पूरी न हो पाए...सारे कमरों तक जाने में एक घंटे से ज्यादा खर्च हो जाए...ऊपर अटारी के दरवाजे से एक और छोटी सी छत..आज के हिसाब से एक पूरे अपार्टमेंट जितनी...



.गेट के बाहर चौड़ा सा रास्ता जो घने जंगलों की ओर जाता हुआ...दोनों तरफ पेड़-पौधों की भरमार...और हमारी हवेली से सटा हुआ लंबा-चौड़ा खेत..खेत में सब कुछ सब्जियां भी..फल भी..अनाज भी...और न जाने क्या-क्या...खेत के चारों और बीच-बीच में सैकड़ों पेड़..एक कुआं और कुएं के चारों ओर रहट..जिससे बैलों के जरिए पानी निकाला जाता था...खेत के एक और किनारे बनी समाधि..इस समाधि तक पहुंचने की हिम्मत बड़ों-बड़ों में नहीं..बाहर वाले क्या घर वाले भी जाने से कतराते...समाधि किसकी थी..बताएंगे...किस्सा सालों का...एक दिन में खत्म नहीं हो सकता...इतनी बड़ी हवेली में कितने लोग रहते थे..बताएंगे..कोई बिजली नहीं..शाम होते ही पेड़-पौधों के सन-सन करती आवाजें....बीच-बीच में जानवरों की आवाजें..और पक्षियों की चहचहाट..सब कुछ था..कभी मनोरम..कभी दहशत पैदा करने वाला..सुबह होते ही मनभावन और शाम ढलते ही..सनसनाहट..घबराहट...जैसे-जैसे अंधेरा होता...मेरे जितने बच्चे के लिए दिल को काबू में करना मुश्किल...जब परिवार साथ में होता तो घबराहट नहीं..लेकिन पूरी हवेली में दो लालटेन और एक दीए की बदौलत चलता कामकाज..ऐसे में मैंने पढ़ाई भी की..बड़ा दिलचस्प किस्सा है...मनोरंजन है..दुस्साहस है..घबराहट हैं और कई अनसुलझी पहेलियां भी हैं...बस थोड़ा सा धैर्य रखिए..दिल कड़ा करिए..घबराहट हो तो इसे दिन में ही पढ़िए...अकेल मत पढ़िए..नौ साल की उम्र में ये सब कैसे झेल गया..कैसे हिम्मत आ गई..जो अब इतनी उम्र में नहीं..सोचता हूं तो सिहरन सी दौड़ने लगती है..उन्हीं यादों में चला जाता हूं..घबराहट सी होने लगती है..इसलिए मैं भी चाहूंगा कि आप एक साथ न पढ़ें..टुकड़ों में पढ़े..मुझे भी लिखने का वक्त चाहिए.आपको पढ़ने के लिए भी.. लेकिन जब ये घटनाक्रम पूरा होगा तो एक पूरी दुनिया सामने आएगी..जो आप सोच भी नहीं सकते...एक-एक कर खुलेंगी परतें..राज..कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी आपकी दिलचस्पी भी बढ़ेगी..कुछ जानकारी मिलेगी..कुछ मनोरंजन भी होगा..कुछ घबराहट भी होगी..कुछ सनसनी सी फैलेगी.आगे क्या होगा कल का इंतजार करिए..ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com