Tuesday, July 14, 2015

भूत की कहानी का 24 वां दिन (भूतिया किले का रहस्य)

देर रात भूतों के हंगामे के बाद सब अचानक गायब हो गए, रह गए मैं और वो लड़की, हवेली की ओर लौटने लगे, मेरे दिमाग में इस हंगामे का तूफान अब तक छाया हुआ था..
.इससे पहले मैं कुछ पूछता.लड़की बोली, पता है क्या सोच रहे हो.तो बता दूं कि ये सब भूतिया किले में रहने वाले साथी थे, और जो उल्लू था, वो अपने जमाने में जाना-माना संगीतकार था, जिसका नाम लिया तो मैं डर गया, यहां नाम लेना ठीक नहीं..तूफान खड़ा हो जाएगा, बोली..वैसे तो मैं आपकी पत्नी हूं लेकिन भूतिया जीवन में मैं किले में भूतों के सरदार की बेटी हूं..और जहां मेरे पिता यानि महाभूत और उनकी बेटी यानि मेरा राज चलता है, सैकड़ों की तादाद में भूत हैं, संख्या घटती-बढ़ती रहती है, भूत भी खत्म होते हैं और तब उन्हें हम दफना देते हैं, तभी हम जानते हैं कि उसे पुनर्जन्म मिल गया है। जैसे आपका गांव है, वैसा ही भूतिया किले की अपनी दुनिया है..जहां सबके कामकाज बंटे हुए हैं..वहां के भी नियम कायदे हैं...अनुशासन है..हां जब भूत किले के बाहर होते हैं तो अपनी मनमानी कर लेते हैं लेकिन सबका हिसाब किताब रहता है और जो भूत गायब होकर कुछ गड़बड़ करते हैं तो उनके पीछे भूतों के जासूस जाकर मालूम करते हैं और सरदार को रिपोर्ट देते हैं। भूतों की दुनिया के कुछ अलग रीति-रिवाज भी हैं..कुछ अलग खान-पान भी हैं और अलग परंपराएं भी हैं।
उसकी बातों में दिलचस्पी आ रही थी, भूतों की तमाम कहानियां सुनी थीं लेकिन एक भूत से भूतों की दुनिया के बारे में चौंकाने वाली जानकारी मिल रही थी।मन तो कर रहा था कि सुनता जाऊं..लेकिन तब तक हवेली आ चुकी थी, जैसे ही गेट आया, लड़की हवा में लहराती हुई गायब हो गई, आसमान में धुएं का गोला छोटा होता दिखाई दिया। चुपचाप हवेली में दाखिल हुआ, और डरते-डरते अपनी चारपाई पर पहुंचा, देखा कि बगल में दादी आराम से सो रही हैं, मैं भी लुढ़क गया लेकिन आंखों से नींद गायब थी..समाधि के पास का माहौल और लड़की की बातें अजीब सा रोमांच-रहस्य पैदा कर रही थीं और मन के भीतर उथल-पुथल शांत होने का नाम नहीं ले रही थी।
तभी फिर अचानक एक आवाज ने मुझे फिर कंपकंपा दिया, थी तो बिल्ली की आवाज, लेकिन आसपास कहीं नजर नहीं आ रही थी, चुपचाप ऊपर से नीचे चादर ताना, पहले से घबराया हुआ था, तभी फिर लगा कि ये आवाज मेरी चारपाई के आसपास ही है, हैरानी की बात ये कि दादी चुपचाप सो रही थीं। फिर लगा कि मेरे कान बज रहे हैं या फिर समाधि स्थल पर जो कुछ हुआ, वो दिलो-दिमाग में बसा हुआ है। खैर आंखें तो बोझिल हो ही रही थी लेकिन फिर देखता हूं कि एक लड़की के जोर-जोर से हंसने की आवाजें..रह-रह कर गूंज रही है, लगा कि क्या वही लड़की है, कानों को सतर्क किया और फिर सुनने की कोशिश करने लगा..मानो हवेली के ऊपर से वो मुझे देख रही थी और विदा होने के पहले ये निश्चित कर लेना चाहती थी कि मैं सुरक्षित चारपाई पर पहुंच गया या नहीं..खैर ये रात कभी न भूलने वाली थी, लेकिन भूतों के किले के बारे में थोड़ी सी ही जानकारी मेरा कौतूहल बढ़ा चुकी थी..कल क्या में भूतों की दुनिया में और गहरे दाखिल हो जाऊंगा..और क्या रहस्य बाहर आएंगे..इसके लिए कल तक का करिए इंतजार......ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com