Wednesday, July 15, 2015

भूत की कहानी का 25 वां दिन(भूतिया किले के बाहर)

सुबह जैसे ही सोकर उठा तो रात का मंजर मन में घुमड़ रहा था, जब चंद भूत इतना हंगामा काट सकते हैं तो भूतों के किले में क्या होगा, स्कूल जाने को तैयार हो रहा था लेकिन मन में भूतिया किले का रहस्य-रोमांच जाने की इच्छा बढ़ती जा रही थी। स्कूल पहुंचा तो देखा कि लड़की कहीं नजर नहीं आ रही, मन और भी बेचैन हो गया, समझ में नहीं आया कि लड़की क्यों नहीं नजर आ रही, आसपास पशु-पक्षियों पर नजर दौड़ाता हुआ घूर कर देखने लगा कि किसी जानवर के रूप में तो इधर-उधर नहीं, कभी आसमान ताकता कि कोई पक्षी नजर तो नहीं आ रहा, आज पहली बार उसके न होने की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी..लगा कि आज पढ़ाई नहीं कर पाऊंगा, इंटरवल तक जब उसकी कहीं परछाईं तक नजर नहीं आई तो मन मायूस हो गया। जैसे ही इंटरवल हुआ, चुपचाप बस्ता उठाया और चल दिया।

समझ में नहीं आ रहा था क्या करूं, लेकिन पैर अपने आप किले की ओर मुड़ गए, जिस किले में कोई भी जाने से घबरा रहा था, कक्षा-चार में पढ़ने वाले बच्चे को न जाने कहां से इतना साहस आ गया कि तेज कदमों से दूसरों से नजर बचाते हुए किले की ओर दौड़ने लगा, जैसे ही किले से आधा किलोमीटर दूर था, अचानक किसी के पीछे से चीखने की आवाज सुनकर में दहल गया। देखा कि एक बैल बड़े-बड़े सींग, उछाल मारते हुए मेरे पीछे आ रहा है, ऐसा हष्ट-पुष्ट बैल तो मैंने आज तक नहीं देखा, इतने बड़े सींग.मानो तलवारें निकली हुई हों और आवाज ऐसी..जैसे फिल्मों में राक्षस दहाड़ते हैं, बुरी तरह घबराया मैं, सोचा क्या करूं, आगे जाऊं या इधर-उधर भागूं, कुछ समझ न आया तो सीधा भागने लगा, बैल उछाल मारता हुआ और अजीब सी आवाज निकालता हुआ, कब मेरे पास आ गया, मुझे नहीं मालूम, कब मैं नीचे जमीन पर धराशायी हुआ, नहीं मालूम,आंखें खोलीं तो देखा कि वही बैल मेरे सामने खड़ा है और मैं धूल में लथपथ जमीन पर लेटा हुआ हूं.

मेरी तो हिम्मत ही जवाब दे गई थी, लगा कि अब उठ भी नहीं पाऊंगा..डर के मारे फिर आंखें मूंद लीं और ईश्वर का नाम जपने लगा। थोड़ी देर बाद फिर आंखें खोलीं तो देखा कि उस भयावह बैल के साथ कई चमगादड़ ऊपर मंडरा रहे हैं, आसपास तरह-तरह की आवाजें आ रही हैं, इंसान को छोड़कर अजीब-अजीब जानवर, मेरे बस्ते पर सांप रेंग रहा है। बैल के ऊपर रात जैसा ही उल्लू बैठा हुआ है, तभी एक कोयल की सुरीली आवाज से महसूस हुआ कि मैं उसी धरती पर हूं, कोयल मेरे आगे चहचहाती हुई और देखते ही देखते वही लड़की सुंदर सी फ्राक में मुस्कराती हुई, भगवान का मन ही मन शुक्रिया अदा किया और उस लड़की का भी, कुछ और देर कर देती तो मेरा क्या होता, ये बैल ही काफी था, और अब तो चारों और अजीब सा मंजर अब भी कभी सांप इधर से उधर उछल रहा है तो कभी बैल के ऊपर बैठा उल्लू अपनी बड़ी-बड़ी डरावनी आंखें बाहर निकाल रहा है कभी भीतर कर रहा है और एक अजीब सा जानवर की पूंछ कभी लंबी हो रही है तो कभी छोटी, कभी हवा में गोल-गोल घूम रही है, अच्छा खासा आदमी पागल हो जाए..भूत-पिशाच की तमाम कहानियां अब तक पढ़ी हैं, फिल्में देखी हैं लेकिन रियलिटी कैसी होती है वो मैं इतनी छोटी सी उम्र में,ऐसे जानवर ही मैंने कभी नहीं देखे जो आज देख रहा था..खैर..आगे क्या हुआ..कल का इंतजार करिए...ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com