Monday, July 20, 2015

भूत की कहानी का 26 वां दिन( भूतिया किले के भीतर)

आंखों के सामने बार-बार अंधेरा छा रहा था, समझ में नहीं आ रहा था कि कहां फंस गया। चारों तरफ अजीब सा माहौल, अजीब से जानवर, अजीब सी हरकतें। मन काफी घबरा गया था कि क्यों में इस किले की ओर अकेला आया। तभी लड़की ने इशारा किया और बाकी जानवर धीरे-धीरे किले की ओर बढ़ने लगे। लग रहा था कि मानो भूतों की बारात निकल रही है। जैसे ही किले के बाहर पहुंचे, जोर-जोर से ढोल जैसी आवाज ने और भी डरा दिया, ये क्या हो रहा है, ये किला बाहर से ऐसा है तो भीतर से कैसा होगा।

खैर, जैसे ही किले के दरवाजे पर पहुंचे, एक-एक कर सारे जानवर कहें या भूत, लापता हो गए, वो लड़की भी भीतर चली गई, मैं दरवाजे पर अकेला बाहर खड़ा, सोचा कि पीछे लौटकर भाग निकलूं, सोच ही रहा था कि अचानक से दो विशालकाय शरीर वाले शख्स मेरे अगल-बगल में आ खड़े हुए। उनकी वेशभूषा बताऊंगा तो हैरान रह जाएंगे, पूरा शरीर काला, पैरों की लंबाई कम से कम छह फुट होगी, जितना लंबा व्यक्ति होता है उतने अकेले पैर, चेहरा कम दिखाई दे रहा, मुंह पर चारों और बड़े-बड़े बाल लहरा रहे। कमर में मोटा सा बेल्टनुमा पट्टा लटका हुआ, हाथ भी कम से कम चार फुट लंबे होंगे और चार-पांच फुट बड़ा पेट, हाथों में बड़ी सी बल्लम टाइप हथियार से, ये दरबान हैं, सुरक्षाकर्मी है या जल्लाद हैं, समझ में नहीं आ रहा था, मैं उनकी ओर देख ही रहा था कि अचानक दोनों के दांत चमके, और जोर सा अट्टाहास करते हुए मेरी ओर आगे बढ़े, काले मुंह पर नीली सी बड़ी-बड़ी आंखें चमक रही थी। मुझे आंखों ही आंखों में इशारा मिला कि किले के भीतर दाखिल होना है, इससे पहले कि मैं पीछे भागने की कोशिश करता, इतने जोर से दोनों चीखे कि मेरी जान ही निकल गई।
बस फिर क्या था, मैं समझ चुका था कि अब फंस चुका हूं और यहां अपने मन की नहीं बल्कि इनकी ही चलेगी। धीरे-धीरे कदम बढ़ाने को हुआ कि किले का दरवाजा जोर से खुला और लगा कि जैसे आंधी-तूफान आ गया है, इतनी तेज हवा कि अच्छी-खासी वजनी चीज भी उड़ जाएं, सांय-सांय करती हवाएं, लगा दोपहर में ही रात हो गई है, हवा में धुआं कहूं या धूल जैसे गुबार बाहर निकल कर आ रहे थे, समझ में नहीं आ रहा था कि यहां सुनामी आई है या फिर कुछ और, हैरानी की बात ये है कि दोनों राक्षस नुमा पहरेदार जोर-जोर से अट्टाहास किए जा रहे थे, मैं डर के मारे हिल रहा था या फिर इस तेज तूफान से..मुझे कुछ नहीं मालूम, बस डर के मारे दांत किटकिटा रहे थे और भीतर तक उनकी आवाज गूंज रही थी, आंखें बंद हो रही थीं और खुल रही थीं। ऐसे मंझधार में फंसा था कि पूछो मत, जो भुगतता है वही जानता है। जैसे ही किले के भीतर पहुंचा तो देखता हूं कि भयानक आवाज के साथ गेट के दोनो पल्ले बंद हो गए, सामने अंधेरा ही अंधेरा, हां अगल-बगल में विशालकाय दोनों पहरेदारों की आकृति जरूर धुंधली सी समझ आ रही थी। ऐसी काली दुनिया जहां कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था कि आगे क्या है, इसके बाद क्या हुआ, उस किले के भीतर की रहस्यमय दुनिया में मेरे साथ क्या हुआ, कल का इंतजार करिए....ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com