Tuesday, July 21, 2015

भूत की कहानी का 27वां दिन (भूतों के सरदार की जब चीख निकली)

किले के भीतर घना अंधेरा, सांय-सांय करती हवाएं, ये कौन सी दुनिया, ऐसी कहानी न तो पढ़ी थी, न सुनी थी, समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी होती है भूतों की दुनिया। तभी अचानक हवा में तैरते काले साये धुंधले से नजर आए, एक नहीं दो नहीं..ढेर सारे, अंधेरा थोड़ा सा छंटता जा रहा था, मैं आगे कैसे बढ़ रहा था, अगल-बगल में डरते-डरते ध्यान दिया तो पता चला कि दोनों विशालकाय राक्षसनुमा पहरेदार मेरा हाथ पकड़े ले जा रहे हैं। अंधेरा तो कम हो रहा था लेकिन धुंधली सी शाम सा नजारा चारों और दिख रहा था, दोपहर के वक्त यहां शाम जैसा माहौल, तभी देखता हूं कि काफी बड़ा मैदान सा है जहां काफी हलचल सी दिख रही है, जैसे-जैसे पास पहुंचा तो देखा कि अजीब-अजीब से लोग, लोग कहें या जानवर या फिर क्या कहें, चित्र-विचित्र प्राणी।
किसी की लंबी पूंछ निकली हुई है तो कोई इतना बड़ा सिर लेकर घूम रहा है कि पूरे शरीर पर भारी, कोई इतना लंबा है कि दो मंजिला तक जा रहा है। किसी के पैर लंबे तो किसी के हाथ लंबे। हर तरफ भयावह नजारा, कोई अचानक हवा में तैर रहा है तो कोई लंबा सांप जैसा रेंग रहा है।


 ऊंचा सा मंच जिस पर विराजमान एक दैत्य आकार का अजीब सा प्राणी, इन पहरेदारों से भी विशालकाय..दोनों और लंबे-लंबे सींग निकले हुए, लंबे-लंबे बाल लहराते हुए, पेट इतना बड़ा..कि कई आदमी उस पेट में समा जाएं। दांतों की सफेद चमकती बत्तीसी बाहर निकली हुई, कान ऐसे जैसे हाथी के भी नहीं होते हैं, हवा में फड़फडाते हुए, उसके हाथ में एक बड़ा सा बेंत। बेंत भी अजीब सा, बेंत टेड़ा-मेड़ा और उस पर रखी हुई एक खोपड़ी। उस भूत को छोड़ अकेले खोपड़ी देख किसी की भी हालत पतली हो जाए।

जैसे ही मैं नजदीक पहुंचा, ऊ ला ला...जैसी आवाज निकालता हुआ जोर से चीखा, दांत ऊपर नीचे हुए, हवा में लंबे-लंबे काले बाल लहराए और चारों तरफ सन्नाटा सा छा गया, जितने भी भूत या जानवर या प्राणी इधर-उधर लहरा रहे थे, सब के सब मानो दुबक से गए, जहां थे वहीं थम गए, एक आवाज का ऐसा आतंक तो मैंने कहीं नहीं देखा था वो भी इतने भयावह भूतों में इतनी शांति, समझ गया यही है भूतों का सरदार, और उस लड़की या भूतनी का पिता, जिसकी इस किले में सल्तनत चलती है भूतों की दुनिया का बादशाह,

मैं लगभग उसके सामने पहुंच चुका था, फिर जोर से चिल्लाया हा हा ही ही हू हू..जैसे मुझे लगा वैसा ही लिख रहा हूं जरूर भूतिया भाषा में कुछ बोला होगा क्योंकि हा हा ही ही हू हू होते ही..सारे के सारे मेरी ओर देखने लगे और मुझे अपने आप ही रास्ता मिल गया, दोनों पहरेदार मेरे दोनों हाथ पकड़े मुझे उसके सामने ले गए। फिर भूतों का सरदार चीखा..क्या उच्चारण था, समझ में नहीं आया..समझ में ये आया कि मैं उछलकर उस मंच पर जहां वो खड़ा था, मैं उछला या किसी ने मुझे हवा में फूंक दिया या फिर दोनों हाथों से ऊपर उठा दिया, कुछ पता नहीं, अब भूतों का सरदार और मैं नौ साल का बालक आमने-सामने थे, सैकड़ों जानवर टुकुर-टुकुर मेरी ओर देख रहे थे और जिस पर मेरी नजर जाती, मुझे लग रहा था कि अकेले ये ही मेरी जान लेने के लिए काफी है, भूतिया किले में आगे क्या हुआ, सरदार ने मेरे साथ क्या किया, बड़ा ही दिलचस्प घटनाक्रम, दिलचस्प अब मुझे लग रहा है, उस वक्त सिहरन पैदा करने वाला डरावना वक्त, क्या-क्या हुआ, कल का इंतजार करिए.....ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com