Sunday, March 8, 2015

भूत की कहानी का सातवां दिन (लड़की कहीं भी नजर आ रही थी)

सुबह उठते ही पिताजी ने फरमान सुनाया कि आज दूसरे घर चलना है..दूसरा घर मतलब गांव के दूसरे छोर पर बने हमारे परिवार के चार घर..चारों बड़े-बड़े घर..हमारी हवेली से थोड़े छोटे..यहां हमारी दादी के भाई रहते थे..चारों आमने-सामने पास-पास बने घर..इनमें भी बड़े आंगन..कई कमरे थे..एक घर से दूसरे घर में जाने के दरवाजे भी...दो घरों में पीछे की ओर कुएं भी थे..और छोटे खेत जितनी जगह में सब्जियां..फल..लगे हुए थे।

सुबह फिर नहाने के लिए कुएं की ओर निकले...आज हम लोग जल्दी में थे..इसलिए एक-एक कर नहाने की कवायद शुरू हुई..मैं भी कपड़े उतार कर अपनी बारी का इंतजार कर रहा था..जिस पत्थर पर बैठा था..उससे थोड़ी ही दूर पर जब अचानक निगाह गई तो देखा..छोटी सी आकृति धुंधली-धुंधली सी नजर आ रही थी..रात जैसी ही बनावट...एकटक उस ओर देखने लगा..आंखों में कभी धुंधलापन सा छा जाता..तो आंखें मल लेता...जोर देकर देखता हूं तो लगा कि कोई छोटी सी गुड़िया है...सफेद से कपड़े पहने हैं..हाईट होगी मुझे थोड़ी सी कम..उम्र में मुझे अपने से कम ही लग रही थी..कभी वो गुड़िया जैसी आकृति दिखती..तो कभी अचानक ओझल हो जाती...मैं समझ नहीं पा रहा था कि ये सब असली है या फिर वहम...मुझे ही कुछ हो रहा है या फिर वाकई वो छोटी सी लड़की दूर खड़ी है...जब एकटक उस ओर देखता ही रहा तो लगा कि पूरी आकृति नजर आ रही है...गोल-गोल छोटा सा मुंह..नन्हे से हाथ-पैर...सफेद फ्राक सी पहनी हुई है...आंखें एकटक उस ओर जमी हुई थी...जब काफी देर आंखें फाड़कर देखता ही रहा तो लगा कि मानो हल्के से मुस्करा रही है....छोटी सी गुड़िया देखकर समझ में नहीं आया कि ये कौन है..यहां क्या कर रही है..कुछ-कुछ अंदाजा लग रहा था कि रात जितनी ही आकृति जैसी है..मन में सवाल उठ रहे थे कि कहीं यही लड़की तो रात में चारपाई नहीं हिला रही थी...फिर सोचा कि ये छोटी सी नन्ही जान ऐसी काली रात में अकेली कैसी आई होगी..और कहां गई होगी..सोच में डूबा..सवाल दर सवाल..खुद से पूछ रहा था कि ये किसकी लड़की है..अकेली यहां क्या कर रही है..और अगर है तो कहां से आती है और कहां चली जाती है...

तभी पिताजी की आवाज से आंखें दूसरी ओर घूमी...जल्दी नहाने के लिए कह रहे थे...नहाने तो लगा कि उस ओर फिर देखने लगा..जहां वो नन्ही सी जान खड़ी थी...लेकिन देखता हूं कि अब वो वहां नहीं...एकटक देखने पर भी नजर नहीं आ रही..खैर पिताजी के डर से जल्दी-जल्दी नहाया और हवेली लौट आया...तैयार होकर हम अपने दूसरे घर की ओर रवाना हुए..आज दिन भर की पिकनिक वहीं मननी थी...खाना-पीना..दिन में आराम..खेलना सब कुछ वहीं तय था....दोपहर का वक्त होने को था..जैसे ही हम हवेली के गेट से बाहर निकले..देखता हूं वहीं सफेद फ्राक पहने लड़की थोड़ी ही दूर खड़ी मुस्करा रही है...हमने फिर भाई से कहा कि देखो ये लड़की कौन है..उसने निगाह दौड़ाई और धीरे से एक हथेली गाल पर जमाई..बोला चलो..तुम्हें आजकल रात में ही नहीं..दिन में भी सपने आ रहे हैं....

मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ये मुझे ही वहम हो रहा है या फिर ये लड़की मुझे ही दिख रही है...खैर..हम लोग हवेली से आगे चलना शुरू हुए..काफी दूर तक घरों का नामोनिशान नहीं था..तभी पीछे मुड़कर देखा तो लगा कि वो लड़की मेरे पीछे-पीछे चल रही है...कभी दिखती..कभी नहीं दिखती..कभी-कभी वो मुस्कराती...मैं चला तो जा रहा था लेकिन लड़की मेरी आंखों में बस चुकी थी...भीतर तक उसके अलावा और कुछ सोच भी नहीं पा रहा था..बस चलता चला जा रहा था..दूसरे घर पहुंचे..दिन भर लजीज भोजन..धमाचौकड़ी..हुई...

तमाम लोगों से मेल-मुलाकात..हाल-चाल..के बाद शाम को हम लौटने लगे..अंधेरा होने लगा था..जैसे ही घर के पास पहुंचा तो घर के पास मिलने वाली पुलिया पर वही लड़की बैठी हुई..दूर से ही नजर आने लगी..अंधेरे में सफेद फ्राक नजर आ रही थी...जैसे ही पुलिया के पास पहुंचा..देखता हूं कि सफेद पुती हुई पुलिया पर एक छोर से दूसरे छोर तक कोई नहीं....गजब हो रहा था..अभी तक रात की बात थी..अब खेत में..हवेली के बाहर..यहां तक की हवेली से थोड़ी दूर तक वही लड़की मंडरा रही थी....आखिर ये लड़की कौन थी..ये वहम था..या फिर वाकई ये नन्ही जान असली थी.किसकी थी ये लड़की..और मुझे ही क्यों दिखाई दे रही थी...कल का इंतजार कीजिए..ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com...