Wednesday, March 11, 2015

भूत की कहानी का 10 वां दिन (लड़की ने हवा में गुम कर दिया सांप)

बच्ची ने कांटा तो निकाल दिया था लेकिन कांटा निकालकर कहां उड़नछू हो गई..समझ में नहीं आ रहा था..पिछले कई रातों से जो डर लग रहा था वो डर तो निकल चुका था लेकिन उस लड़की में दिलचस्पी जरूर जाग चुकी थी..तमाम सवाल उमड़-घुमड़ रहे थे लेकिन जवाब एक का भी नहीं मिल रहा था।

एक तरफ डर था तो दूसरी तरफ उस लड़की के बारे में जानने की इच्छा...बीच मझंधार में फंसा हुआ था...अब बहुत हो चुका था..मैंने सोच लिया था कि इस लड़की का पर्दाफाश तो करना ही है..कौन है ये..इसके बारे में पता लगाना ही है..ये मुझे ही क्यों दिख रही है..दूर क्यों चली जाती है..इसके साथ में तो कोई नहीं...ये सवाल लिए मैं हवेली के आंगन में बैठा हुआ था तभी देखा कि एक तितली उड़ रही है.. .उस तितली को पकड़ने का मन चाहा..रंग-बिरंगी तितली..मन को पसंद आने वाली तितली..तितली भागी चली जा रही थी..मैं उसके पीछे-पीछे..तितली कभी ऊपर..कभी नीचे...चलते-चलते मैं फिर उसी स्थान पर पहुंचा जहां समाधि बनी हुई थी..देखा तितली जमीन में बैठ गई..जैसे ही मैं तितली को पकड़ने के लिए नीचे झुका..देखा कि तितली उचक कर और पीछे जाकर बैठ गई..जैसे ही समाधि के पीछे पहुंचा देखा कि तितली गायब..तितली की जगह लड़की खड़ी मुस्करा रही है..आज पहली बार उसको पास से पूरा शरीर देख रहा था..नन्हीं सी जान..सुंदर सी..प्यारी सी...उम्र मेरे से एक-दो साल छोटी..बस हौले-हौले मुस्करा रही है..मैं उसके पास पहुंचा..डर था लेकिन गुस्सा भी..साहस भी...मै उसके पास पहुंचा तो बोली..दूर से बात करो..मैं भाग जाऊंगी...

गुस्से में था मैं..पूछा कि तुम कौन हो..कहां से आती हो..कहां जाती हो..रात को भी तुम आ जाती है..तुम्हारा घर कहां है..एक साथ कई सवाल मैंने उस पर दाग दिए...मुस्कराती रही..बोली..तुम मुझे नहीं जानते..मैं तो तुम्हें जानती हूं..सोचो मैं कौन हूं...मेरा और आपका गहरा संबंध हैं..बहुत पुराना संबंध हैं..मैं सवाल कर रहा था वो जवाब दे रही थी लेकिन सवालों का सही जवाब नहीं मिल रहा था..बोली...आपका और मेरा गहरा नाता है..आप नहीं पहचाने तो क्या हुआ..मैं पहचानती हूं....



ये सवाल-जवाब हो ही रहे थे कि देखा कि एक काला सांप मेरी ओर बढ़ रहा है..फन ऊपर उठाए..लड़की मुस्कराई...सांप का फन पकड़ा और ऐसे हवा में फेंका कि मैं ऊपर आसमान ताकता रह गया...आसमान में उस सांप का पता नहीं..कहां हवा में घूम हो गया..नीचे देखा तो... न तो लड़की सामने है..न ही सांप है..मैं अकेला खड़ा हूं...पीछे से भाई की आवाज आ रही है..कि तुम आजकल ज्यादा शैतानी करने लगे हो..कहीं भी बिना बताए चल देते हो...भाई हाथ पकड़ कर वापस ले जा रहा था...

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है...ये लड़की बड़ों जैसी बड़ी-बड़ी बातें कर रही हैं..ऊपर से ये काला नाग कौन था...जो मेरे पर अटैक करने वाला था..उस गुड़िया ने उस नाग को हवा में कैसे गुम कर दिया....अबूझमाड़ के जंगल भी इतने अबूझ पहेलियां नहीं होंगी..जितनी अबूझ पहेलियों में मैं फंस चुका था..कभी डर लग रहा था..कभी मजा आ रहा था..इतने रहस्य हैं..जो खुलेंगे..इतने खुलेंगे कि आप दंग रह जाएंगे..मैं भी दंग हुआ था..आज भी सोचता हूं तो वो डर समाने लग जाता है..बड़ी हिम्मत कर लिखने की हिमाकत कर रहा हूं..देखता हूं कि कहां तक लिखता हूं..और क्या-क्या खुलासे होते हैं..किस दुनिया में था...वो लड़की कौन थी..कुछ-कुछ आपको पता चला होगा..कल और क्या खुलासा होगा..वो लड़की क्या बताएगी..क्या गुल खिलाएगी...कल का इंतजार करिए.....ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com