Tuesday, March 10, 2015

भूत की कहानी का नौंवा दिन (समाधि के पीछे कौन झांक रहा था?)

सुबह जब आंखें खोली तो बड़ी देर तक उठने की हिम्मत नहीं हुई..वही सफेद फ्राक वाली लड़की दिमाग में घूम रही थी..कैसे वो रात में पलक झपकते उड़ती सी हुई गायब हो गई..आखिर क्यों वो मेरे पास आ रही है..और चली जा रही है...सोच में डूबा ही था कि मां की तेज आवाज से चारपाई पर बैठ गया..वो उठने के लिए कह रही थीं..सामने देखता हूं तो आंगन में लगे पेड़-पौधों के पीछे से वही लड़की झांकती सी नजर आ रही है। पिछले दो दिनों से जो लड़की दूर से दिख रही थी..अब मेरे नजदीक नजर आने लगी थी..मैं चारपाई से उठा और उन पेड़-पौधों की ओर जाने लगा..जैसे ही नजदीक पहुंचा..लड़की मुस्कराई और जैसे ही पास पहुंचा..देखा कि लड़की लापता..जहां लड़की खड़ी थी..चारों तरफ मुआयना किया..कहीं कोई नामो-निशान नहीं...समझ में नहीं आ रहा था कि ये लड़की कौन है..और क्यों आंख-मिचौनी खेल रही है।



सूरज आसमान में चढ़ रहा था..आंगन में खासी धूप फैल रही थी..मैं उस लड़की की उधेड़बुन में डूबा हुआ..अब तो मैंने बारी-बारी सभी पेड़-पौधों के चारों और परिक्रमा लगाकर छान मारा लेकिन लड़की कहीं नहीं दिखी..मुझे पूरा अंदाजा था कि लड़की मेरे से खेल खेल रही है..सोचा..जरूर किसी ने किसी कमरे में या किसी कोने में जाकर छिप गई है या फिर जगह बदल-बदल कर छिप रही है। हवेली इतनी बड़ी थी कि एक कोने से दूसरे कोने जाएंगे तब तक दूसरा शख्स न जाने कहां से कहां पहुंच जाएगा। खैर मां की डांट के बाद मुंह-हाथ धोकर आंगन में दूसरे बच्चों के साथ बैठ गया। एक-दो घंटे बाद जैसे ही कुएं की ओर रवाना हुए..देखता हूं..कि लड़की पीछे-पीछे चली आ रही है..कभी दिखती..कभी गायब हो जाती...कुएं के पास पहुंचते ही भाई-बहन तो पानी में खेलने लगे..मैं उस लड़की को इधर-उधर खोजने में जुट गया..बड़ी बेचैनी होने लगी..थोड़ी देर बाद देखता हूं कि उस समाधि के पीछे से वो लड़की झांक रही है..अब मेरे से रहा न गया...उस ओर बढ़ने लगा जहां से लड़की नजर आ रही थी..ऊंची सी पहाड़ी के पास वो समाधि बनी हुई थी..उसके आसपास कटीली झांड़ियां और ऊबड़-खाबड़ पत्थर इधर-उधर बिखरे हुए थे..नंगे पैर मैं अकेले उस समाधि की ओर बढ़ ही रहा था कि अचानक पैर में कांटा चुभा..इतना तेज कि लड़खड़ा कर गिर गया..नीचे बैठा हुआ दर्द से कराहते हुए कांटा निकालने की असफल कोशिश कर ही रहा था कि अचानक किसी ने हाथ लगाया और कांटा निकाल कर फेंक दिया..ऊपर सिर उठाकर देखा तो वही लड़की..गोल-मटोल चेहरा..हल्के से मुस्कराती हुई बोली..आपको यहां नहीं आना था..जाओ लौट जाओ..जब तक मैं उससे पूछता कि वो कौन है..तब तक वो गायब हो चुकी थी..चारों और नजर दौड़ाई...कोई नहीं..एक तरफ डर..दूसरी तरफ पैर में लगे कांटे ने बुरा हाल कर दिया था..तब तक भाई की आवाज गूंज रही थी कि उधर मत जाओ..लौट कर आओ...कुएं पर लौटा तो भाई ने कपड़े से पैर बांधा और लड़खड़ाता हुआ हवेली लौट आया...वो लड़की पहले रात में दिख रही थी...फिर दिन में भी दिखने लगी..पहले दूर से ही ओझल हो जाती थी..आज पास तक आई..बल्कि उसकी मीठी सी आवाज भी सुनी...

दादी ने भूतों की कहानियां बहुत सुनाई थीं...लेकिन ये लड़की वाकई भूत है तो फिर छोटी सी गुड़िया सी..मुस्कराता चेहरा तो नहीं होना चाहिए..भूत तो डराते हैं..बड़े-बड़े दांत होते हैं..खून ही खून नजर आता है..हडडियां नजर आती हैं..कंकाल से लटकते हैं..या कैसा भूत है..क्या वाकई ये भूत है..या फिर कोई भूली-बिसरी लड़की है..अकेली माता-पिता बिछड़ गए होंगे इसलिए अकेली रह रही होगी...या फिर अनाथ होगी..या फिर आसपास से भटकती हुई आ गई होगी..ऐसे तमाम सवाल मन में चल रहे थे...भूत है तो मेरा पीछा क्यों कर रही है..मेरे से क्या संबंध है...क्या ये वहम है..क्योंकि किसी ओर को तो नजर नहीं आ रही...मन उलझ रहा था..कभी इधर-उधर..कभी कुछ सोचता-कभी कुछ सोचता...लड़की भूत है तो इतनी छोटी सी क्यों..क्या अभी-अभी भूत बनी है..क्या किसी भूत की बच्ची है..हकीकत में कौन ये है...रहस्य से पर्दा उठेगा...कल का इंतजार करिए...ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com