Thursday, March 12, 2015

भूत की कहानी का 11 वां दिन (कहां गई वो लड़की?)

कहानी थोड़ी-थोड़ी आपकी समझ में आ रही होगी..मेरी भी समझ में थोड़ी-थोड़ी आ चुकी है..दरअसल ये लड़की मेरे से जरूर ताल्लुक रखती है..इसलिए मुझे ही दिखाई दे रही है..मेरे आसपास ही मंडरा रही है..लेकिन ये क्लियर नहीं  हो रहा है कि ये लड़की है कौन..और इससे मेरा कोई रिश्ता है या नहीं..खैर...इन्हीं गुत्थियों में उलझा हुआ हवेली की ओर लौट आया...

दोपहर का वक्त होगा..भोजन के बाद बड़े-बूढ़े तो अपनी-अपनी कोठरी में सुस्ताने के लिए चले गए..बच गए हम पांच बच्चे...बड़े भाई अपनी किताब लिए आंगन के एक कोने में बने बरामदे में बैठ गए..बाकी हम चार बच्चे अपने-अपने खेलकूद में मस्त..आपको खुलासा कर ही दूं..इन सभी बच्चों में मेरी बहन और मैं सबसे तेज थे..मुझे कोई न कोई शरारत..मस्ती और दुस्साहस में मजा आता था...गुल्ली डंडा अगर आप जानते हों तो मैं उससे खेलने में जुटा हुआ था..लकड़ी से गुल्ली मारते-मारते पहुंचा गेट के बाहर..दोपहर का वक्त...बाहर तक किसी भी प्राणी का नामोनिशान नहीं...तभी देखता हूं कि वही लड़की मुस्कराते हुए खड़ी है...मुझे कभी प्यार..कभी गुस्सा आया..ये यहां भी खड़ी हुई है..दूर झाड़ियों के पास खड़ी उस लड़की ने मुझे इशारा कर अपने पास बुलाया..मैंने पहले सोचा कि जाऊं कि नहीं जाऊं..लेकिन उसके इशारे को मना नहीं कर पाया..देखता हूं कि जैसे ही लड़की के पास पहुंचा..लड़की उस स्थान से और पीछे खड़ी है....ये क्रम चलता रहा..और चलते-चलते मैं पहुंच गया खेत के दूसरे छोर तक..किनारे लगे एक पेड़ के पास..देखा लड़की फिर गायब..मैं समझ नहीं पा रहा था कि ये लड़की मेरे से आंखमिचौनी क्यों खेल रही है..पास आती है..और फिर दूर भाग जाती है...गुमसुम सा खड़ा सोच ही रहा था..इधर उधर देख रहा था कि तभी लड़की पेड़ के पीछे से झांकी..मैं समझ गया कि ये शरारत कर रही है..गुस्से में आकर उस लड़की को पीछे से जाकर पकड़ लिया...दोनों हाथों से घेरा बनाए..उसे जकड़ने की कोशिश में जुटा ही था कि आंखों के सामने अंधेरा छा गया..लड़की मेरे हाथों के घेरे में नहीं..और अपने ही दोनों हाथों को लेकर मैं खुद को जकड़ने की कोशिश कर रहा हूं...मैं आसपास ही देख ही रहा था कि ऊपर से आवाज आई..मैं इधर हूं..देखता हूं..लड़की फिर मोटी सी डाली पर बैठ मुस्करा रही है...पैर-आगे पीछे झुलाती हुई...मैंने पूछा कि तुम इतने ऊपर कैसे पहुंची...तो जवाब मिला..मैं इससे भी ऊपर पहुंच सकती हूं..मेरा दूसरा सवाल था कि तुम हो कौन...फिर जवाब मिला...तुम पहचानो..मैं कौन हूं...तुम मुझे नहीं जानते..मैं तो तुम्हें जानती हूं....मीठी-मीठी आवाज में रहस्य भरी बातों से मेरा मन रोमांचित हो रहा था...फिर मैंने पूछा कि तुम कहां रहती हो..बोली..यहीं रहती हूं..और कहां जाऊंगी...तुम्हारा घर कहां है..फिर बोली..यही मेरा घर है..माता-पिता के बारे में पूछा तो गुमसुम हो गई..बोली..बहुत सवाल कर रहे हो..सब जवाब मिल जाएंगे...मैंने पूछा कि तुम गायब कहां हो जाती हूं..फिर मुस्कराई...बोली...मैं कहां जाती हूं..मैं तो हर वक्त तुम्हारे साथ हूं...रात को भी तुम्हारे साथ रहती हूं..तुम ही मुझे देखते नहीं...ऐसे-ऐसे जवाब..मेरी समझ में नहीं आ रहा था..मैंने कहा..हो तो छोटी सी..बातें बड़ी-बड़ी करती हो...बोली..अभी तो पकड़ में आए हो..आगे-आगे देखो होता है क्या...



कुल मिलाकर बड़ी ही दिलचस्प बातें होती रही..आखिर में बोली..अब तुम जाओ..मैं भी चलती हूं..ये कहना ही था कि देखा कि लड़की ऊपर से गायब...मैं सोच ही रहा था कि इसमें गजब की फुर्ती है...तभी देखा कि लड़की जहां से लेकर आई थी..उसी ओर कुलांचे भरती हुई चली जा रही है..मैं उसके पीछे-पीछे हांफता सा भाग रहा था..थोड़ी ही देर में वापस हवेली के गेट के पास पहुंचा..और देखता हूं...कि लड़की जहां पहुंची थी..उससे ऊपर की उठी..थोड़ी ही देर में धूल का गुबार..ऐसा गुबार जो लगातार ऊंचा उठता चला गया..मैं टकटकी लगाए आसमान की ओर ताकता रह गया..तब तक....सिर ऊपर...जब तक कि वो धूल का गुबार हवा में विलीन न हो गया। ईश्वर की अजब-गजब माया चल रही थी...मैं वापस अपना गुल्ली-डंडा लिए हवेली के भीतर..अब उस लड़की की याद सताने लगी थी..पहले कुछ ज्यादा डर लग रहा था कि लेकिन आज की बात के बाद लगा कि..ये लड़की तेज है..बातूनी है..मजे ले रही है..चालाक बनने की कोशिश कर रही है..इसको तो मैं छोड़ूंगा नहीं..आज नहीं तो कल पकड़ में आएगी जरूर...और पकड़कर इसकी सारी पोल-पट्टी उगलवा कर रहूंगा...क्या कल वो लड़की फिर मिलेगी..मेरे पकड़ में आएगी कि नहीं...क्या मैं उसका रहस्य जान पाऊंगा..देखते हैं कल क्या होता है...कल का इंतजार करिए.....