Saturday, September 26, 2015

भूत की कहानी का 79 वां दिन (भक्तों की रहस्यमय टोली का क्या राज़ था?)

दादी कहानी सुना रही थीं.......शिवरात्रि का वक्त था, टीकमगढ़ के पास शिवजी का प्रसिद्ध मंदिर है कुंडेश्वर..हर शिवरात्रि पर्व पर बड़ा मेला लगता है और हजारों की तादाद में भक्त पहुंचते हैं। ये बात करीब चालीस साल पुरानी है। अगले दिन शिवरात्रि थी और हमारे गांव से भी लोगों के जाने का सिलसिला शुरू हो गया था। उस वक्त गांव बानपुर से कुंडेश्वर जाने के लिए कोई बस नहीं थी..गांव में मुझे याद भी नहीं कि उस वक्त एक भी कार थी..शायद ही कोई ट्रैक्टर हो...परिवहन का एक मात्र साधन या तो बस थी या फिर बैलगाड़ी...99 फीसदी लोग बैलगाड़ी के सहारे ही इधर से उधर जाते हैं और दस-पंद्रह किलोमीटर के लिए ही घंटों लग जाते थे। हमारे परिवार की भी एक बैलगाड़ी तैयार हुई। उस बैलगाड़ी में दस-बारह लोग लद गए। बैलगाड़ी जंगल-जंगल चलना शुरू हुई। उसी में खाने पीने का सामान भी लदा हुआ था। कुछ ही किलोमीटर आगे बढ़े थे..कि रास्ते में भक्तों की एक टोली दिखाई दी। कुर्ते-पाजामा धोती में लोग थे और साड़ी में महिलाएं थीं। ढोल-मजीरों के साथ...

बैलगाड़ी आगे-आगे चल रही थी..और पीछे-पीछे टोली आती दिखाई दे रही थी..ढोल-मजीरों के साथ शिवजी के भजन गूंज रहे थे। ऐसी टोली अक्सर रास्तों में टकरा जाती थीं..कुछ भी नया नहीं था..लेकिन जैसे ही आगे बढ़े तो देखा कि वो टोली हमें फिर नजर आ रही है। ये टोली पहले पीछे थी...फिर ये टोली हमारे आगे कैसे पहुंच गई..वही पुरुष..वही महिलाएं...वही ढोल-मजीरे...
दादी सुना रही थीं..वहीं से माथा ठनकने लगा..लेकिन लगा कि कोई ऐसा रास्ता होगा जो शार्टकट होगा..इसलिए पहाड़ियों से होकर आगे पहुंच गए होंगे..लेकिन कुछ और आगे बढ़ने के बाद फिर वही टोली नजर आने लगी..दादी की कहानी में अब रोमांच पैदा हो रहा था...बताने लगीं...ऐसा कई दफा हुआ तो बैलगाड़ी में सवार सभी लोग एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। आखिर ये क्या माजरा है..ये टोली हवा की गति से कैसे आगे बढ़ रही है। दादी ने बताया..कि अबकी बार जैसे ही ये टोली नजर आई..हमने उन्हें ध्यान से देखना शुरू किया..तो देखकर हमारा दिल धक-धक करने लगा..उनके पैर उलटे थे...ऐसे पैर हमने कभी नहीं देखे..पैर उलटे थे..और तेजी से आगे बढ़ रहे थे। रास्ते भर वो हमें नजर आते रहे।
जब हम कुंडेश्वर मंदिर पहुंचे तो वहां भारी भीड़...ठहरने के लिए धर्मशाला के एक कमरे में इंतजाम था...सामान लेकर कमरे में थोड़ी देर सभी ने विश्राम किया..शाम ढल चुकी थी..मंदिर की आरती का समय हो रहा था....हम लोग भी भीड़ के बीच आरती में शामिल होने पहुंचे...वहां भीड़ में जब एक तरफ नजर पड़ी और भौचक्के रह गए..वही टोली भजन-कीर्तन के साथ आरती में मौजूद थी। दूर से ही उन पर नजर जाती रही। वापस कमरे में पहुंचे तो देखा कि बगल के कमरे में ही वही टोली मौजूद है।
आगे क्या हुआ..मैं दादी से पूछ रहा था..दादी सुना रही थीं..धैर्य से सुनो..कहानी बड़ी दिलचस्प है। उनके बगल के कमरे में देखकर सभी का दिल घबराने लगा..बाहर आते-जाते जैसे ही वह टोली नजर आती..हम लोग दाएं-बाएं हो जाते। आखिरकार उस टोली से हमारा सामना हुआ..उस आमने-सामने में क्या हुआ...कौन थी ये टोली...क्या रहस्य उजागर हुए...कल का इंतजार करिए......now see.....www.bhootworld.com