Sunday, March 29, 2015

भूत की कहानी का 21 वां दिन (भूतों की बस्ती)

शाम हुई तो पढ़ाई शुरू हुई..दादी रात के भोजन की तैयारी में जुटी हुईं थीं..मैं  नीचे जमीन पर आंगन में पढ़ाई कर रहा था...तभी देखता हूं कि मेरे साथ भी वो लड़की बगल में आकर बैठ गई है..बोली..चलो आपको भूतों की बस्ती दिखाती हूं..मैं मजाक समझ रहा था..वो सीरियस थी...शाम को वो भी हवेली से दूर भूतों की बस्ती में कहां ले जाएगी..समझ में नहीं आ रहा था...लेकिन उसकी जिद थी तो माननी ही थी..इसके अलावा कोई चारा भी नहीं था..मैंने दादी को आवाज लगाई कि मैं बाहर खेलने जा रहा हूं....और उस लड़की के साथ हवेली के बाहर पहुंच गया।


लड़की मुझे गांव के दूसरे छोर पर ले गई जहां पुराना किला था..ऐसा किला..जहां दिन में भी जाने में डर लगता था...कोई वहां नहीं जाता था...कहते हैं कि या तो उसमें चोर-बदमाश या फिर दारू पीने वाले ही दाखिल होते हैं..कोई शरीफ आदमी वहां नहीं जाता..लेकिन लड़की मेरा हाथ पकड़कर किले के द्वार पर पहुंच चुकी थी..अंधेरा सा हो रहा था...मेरी हिम्मत किले के बाहर से ही जवाब दे चुकी थी..लेकिन लड़की थी कि मानती नहीं...बोली..मैं हूं ना..डरने की जरूरत नहीं..और ये तो हमारी भूतों की बस्ती है..ऐसी ही कई और भी बस्तियां हैं..लेकिन जहां मैं रहती हूं..वहां लेकर आई हूं...जैसे ही थोड़े से आगे बढ़े..एक चमगादड़ सन्न-सन्न करता इधर से उधर..लगता है कि अभी मेरे सिर से टकराएगा..लेकिन लड़की ने जैसे ही जोर से फूंक मारी..चमगादड़ गायब हो गया..थोड़ी ही दूर और चला तो देखता हूं कि दीवार पर एक लंबा सा कोबरा सांप लटक रहा है..लग रहा था कि कभी भी उछलकर ऊपर गिरेगा...मैं मन ही मन लड़की को कोस रहा था कि और लड़की मुस्कराए जा रही थी...जैसे ही लड़की ने देखा कि मैं सांप से डर रहा हूं..उसने फिर जोर से फूंक मारी..देखा कि सांप भी आराम से रेंगता हुआ गायब हो गया.....और आगे पहुंचा तो देखा कि बड़ा सा चबूतरा..या कहें दरबार हाल जैसा..राजा-महाराजाओं के जमाने का..जहां बड़े-बड़े मकड़ी के जाल फैले हुए...देखता हूं कि एक बड़ा सा भैंसा वहां बैठा हुआ है..समझ में नहीं आया कि किले के भीतर जहां कोई नहीं..भैंसा क्या कर रहा है..लड़की की ओर आशंका की नजर से देखा तो बोली..चिंता मत करो..ये सब हमारे संगी साथी हैं...और भैंसे को छेड़ना भी मत..जहां बैठा है..बैठे रहने दो...अगर अपने विशालकाय स्वरूप में आ गया तो आप यहीं बेहोश हो जाओगे। ये हमारे यहां के सरदार हैं..यानि भूतों के सरदार...लेकिन अभी आपको भैंसें के रूप में ही नजर आएंगे...बीच-बीच में कबूतर...चिड़ियों की चहचहाट...लड़की बता रही थी कि ये पूरी बस्ती भूतों से भरी हुई है...एक-एक जानवर..पक्षी..सांप..नेवला...मक्खी..मच्छर तक सैकड़ों की संख्या में भूतों का डेरा है....अंधेरा घिरता जा रहा था और लड़की अचानक मेरा हाथ पकड़कर वापस चलने लगी..मैंने पूछा कि क्या हुआ...बोली..चलो वक्त हो रहा है भूतों की बस्ती का..रात के अंधेरे में ये पूरी बस्ती अपने असली स्वरूप में आ जाएगी और फिर तुम्हारा बचना मुश्किल हो जाएगा...रात को भूतों का सरदार इकट्ठे होकर सबकी एक बार गिनती करता है ताकि भूत इधर उधर गायब न हो जाएं।

मुझे ताज्जुब हो रहा था कि ये कैसी बस्ती है जहां रोज गिनती भी होती है..खैर..उसने मुझे किले के गेट तक बाहर छोड़ा...और हवेली लौट जाने को कहा...पीछे मुड़कर देखा तो लड़की गायब थी...गेट पर ही देखता हूं...कि अजीब अजीब से कीड़े-मकोड़े रेंगते हुए किले की ओर जा रहे थे..किले के पास ही कई सांप...अलग-अलग रंग के..कोई छोटा..कोई लंबा...अजीब से आकार-प्रकार.....अब तो मेरा ये हाल था कि जो भी जानवर दिख रहा था..जो भी पक्षी नजर आ रहा था..मैं यही सोच रहा कि ये सारे के सारे भूत हैं...और किले के भीतर भूतों की बस्ती में जा रहे हैं..मैं अंदाजा नहीं लगा पा रहा था कि वाकई इतने भूत एक जगह हो सकते हैं...या फिर ये लड़की यूं ही मुझे डरा रही है...तेजी से भागता हुआ घर पहुंचा तो दादी गुस्से में थीं..बोली..पूरे में तलाश चुकी हूं..कहां गायब हो गए थे...मैंने बहाना बनाया कि दादी...पास की पुलिया तक दौड़ता हुआ चला गया था..पतंग कट कर गिरी थी..उसी के पीछे था...जैसे-तैसे हवेली में पहुंचा तो अंधेरा हो चुका था और भोजन के बाद जब पलंग पर लेटा तो भूतों की दुनिया या फिर कहें किले का तिलस्म दिलो-दिमाग में छाया हुआ था..कभी आंखों के आगे चमगादड़ की सांय-सांय करती आवाज..कभी लटकता हुआ सांप तो कभी बड़ा सा भैंसा...अजीब सा समां..सोचते-सोचते सो तो गया लेकिन अगले दिन ये लड़की अपने पुराने जन्म की और भूत बनने का क्या रहस्य खोलेगी..कल का इंतजार करिए.....
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