Tuesday, August 18, 2015

भूत की कहानी का 52 वां दिन (क्यों नहीं पहुंच पाया समाधि तक?)

घर पहुंचकर अभी पेड़ के पीछे उस पैर के बारे में ही सोच रहा था कि रामू का बेटा हवेली पहुंचा..दादी ने उसे डांट लगाई कि तुम दिन से भर से कहां थे..बड़ा ही मासूम होकर बोला कि मैं तो कुएं के पास पेड़ के नीचे जाकर सो गया था..तो क्या ये रामू का बेटा था..जिसका पैर पेड़ से बाहर निकला हुआ था..क्या वो भूत नहीं था..ये सोचकर मैं और परेशान हो गया..मैने पूछ ही लिया तो तुम वहां सो रहे थे जहां समाधि बनी है..उसके पास पेड़ के नीचे..बोला हां..वहीं सो रहा था..क्या हुआ?...मैंने कहा कुछ नहीं..बस यूं ही पूछ लिया...

अब मेरी जान में जान आई कि वो कोई भूत नहीं था..फिर क्या रामू फालतू में ही भूत होने का वहम पाले हुए हैं..या फिर समाधि के पास कुछ है...मन नहीं माना..अगले दिन फिर सुबह होते ही कुएं की ओर चल दिया...आंखों में बस वही समाधि बसी हुई थी...कल तो बहुत डर गया था लेकिन आज हिम्मत थी क्योंकि वहम दूर हो चुका था...इसलिए कुएं से सीधे समाधि की ओर रुख किया...उस और वाकई सूनसान नजर आती थी...समाधि कुछ ऊंचाई पर बनी हुई थी..और आमतौर पर कोई वहां नहीं जाता था..खेती से अलग वो हिस्सा छूटा हुआ था...चढ़ाई चढ़नी शुरू की..बीच-बीच में वहां पेड़ और झाड़ियां भी कम नहीं है..चला ही जा रहा था..कि अचानक नीचे निगाह पड़ी और चीख निकल गई...काला भुजंग सांप लहराता हुआ..मेरे पास आ चुका था..मैं उछलकर साइड हुआ..तो देखा तेजी से नीचे की ओर ये सांप चला जा रहा है..क्या वाकई समाधि के पास कुछ रहस्यमय है..लेकिन ये भी हो सकता है कि यहां तो सांप है ही..जरूरी नहीं कोई भूत हो...थोड़ा और आगे बड़ा तो देखा कि. हाथ की हड्डियां बिखरी हैं..थोड़ा और चला तो दूसरी तरफ.. फिर पैर की हड्डियां की दिखाई दीं....कुछ और हड्डियां दिखीं..लगा कि  किसी ने कंकाल के टुकड़े-टुकड़े कर फेंक दिए हों..
अब फिर डर समाने लगाता था कि अचानक देखता हूं कि समाधि के पीछे की तरफ से धूल का एक गुबार जोर से उठा है..और बढ़ता ही जा रहा है..हवा तेज होती जा रही थी..और गुबार से आसपास धुंधला सा छाने लगा था. इतने में गुबार ने मुझे चपेट में ले ही लिया और आंखों में जो धूल भरी..कि मुश्किल हो गया...समझ गया था कि ..आगे बढ़ना ठीक नहीं...ये धुएं का गुबार न जाने क्या गुल खिलाएगा...मैं फिर पीछे की हटा..और वापस कुएं की तरफ लौट आया.आंखों में जलन भी खासी हो रही थी..कुएं पर पहुंचते ही पानी से बड़ी देर तक आंखें धोता रहा..तब जाकर चैन मिला...
समाधि की ओर देखा तो गुबार शांत था..फिर बेमन से हवेली की ओर रुख किया...और जैसे ही समाधि के पास से गुजरा तो वाकई लगा कि कोई आवाज आ रही है..वो भी समाधि की तरफ से ही..अजीब सी आवाज...कभी लगता कि कोई रो रहा है..कभी लगता है कि कोई हंस रहा है..बार-बार आवाज बदल रही थी...हे भगवान...ये समाधि क्या गुल खिलाएगी...क्या वाकई वहां कुछ है..या फिर वहम है...आगे क्या होगा?...कल का इंतजार करिए..
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