Wednesday, August 19, 2015

भूत की कहानी का 53 वां दिन (रोशनी को लेकर चल रही आकृति)

शाम होने को थी..मन नहीं मान रहा था..फिर उस समाधि और वहां होने वाली हरकतों में मन भटक रहा था..शाम को खेलने के वक्त फिर कुएं की ओर चल पड़ा..ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी...आसमान में बादल छाए हुए थे..हल्का सा अंधेरा हो रहा था...कुएं की तरफ चल रहा था कि देखा कि गेहूं के हरे-भरे खेत में दूर कुछ हलचल सी नजर आ रही है..फिर लगा कि कुछ नहीं है..हवा तेज चल रही है..इसलिए लगा हो..लेकिन फिर लगा कि पौधे हिल रहे हैं..धुंधलके में साफ-साफ दिख नहीं रहा था लेकिन लगा कि कोई काली सी आकृति हरे-भरे खेत में नजर आ रही है..फिर नजर डाली तो साफ-साफ दिख ही गया कि बड़ी सी काली सी आकृति हिल-डुल रही है..

कुएं की तरफ बढ़ तो रहा था कि नई आफत ये काली सी आकृति लेकर आई थी..फिर भी हिम्मत कर चलता चला गया...लेकिन देखता हूं कि आकृति भी कभी कहीं दिख रही है..तो कभी कहीं..कुएं के पास पत्थर पर जाकर बैठ गया..समाधि के पास तो बाद में जाऊंगा..पहले इस आकृति का रहस्य तो जान लिया जाए...
एकटक उस सरकती हुई काली सी आकृति पर नजर जमी हुई थी..आकृति धीरे-धीरे खेत के एक तरफ से दूसरी तरफ सरकती जा रही थी..लग रहा था कि कुछ ही पल खेत से बाहर आ जाएगी...एक तरफ उस आकृति के बारे में जानने की इच्छा थी..तो दूसरी तरफ डर भी बढ़ता जा रहा था कि न जाने कौन है..क्या है..और मैं यहां कुएं पर अकेला हूं..अंधेरा वैसे ही घिरता जा रहा है...अब ये आकृति खेत के बिलकुल किनारे आ चुकी थी..और जैसे ही खेत से बाहर निकली आकृति...मैं बेतहाशा चौंक उठा...ये काली आकृति कोई और नहीं भैंस थी..जो खेत में एक तरफ से दूसरी तरफ निकली थी...देखकर जान में जान आई।

अब समाधि की ओर चलने का मन हुआ...धीरे-धीरे फिर समाधि की ओर रुख किया..अंधेरा बढ़ता जा रहा था..और आसपास आसानी से दिख नहीं रहा था..तभी लगा कि समाधि के पीछे से हल्की सी रोशनी चमकनी शुरू हुई है...धीरे-धीरे कर ये रोशनी फैलती जा रही थी...कुछ ही देर में समाधि के पास उजाला सा फैल गया था...अब मैं वहीं ठिठक गया था..ऐसे अंधेरे में चमकती रोशनी और ऊपर से अकेला..आगे बढ़ना ठीक नहीं....वहीं रुक गया और सोचने लगा कि समाधि की तरफ न जाकर सीधे हवेली का रुख किया जाए..नहीं तो अकेले में कोई भी अनहोनी हो सकती है...
हवेली की ओर तेज कदमों से चलने लगा और वो रोशनी समाधि के उस पार से आगे आ चुकी थी..रोशनी मेरी तरफ बढ़ रही थी..और मैं तेज कदमों से हवेली की तरफ..तभी देखता हूं.. कि रोशनी के बीच कोई मानव जैसी आकृति भी बन रही है...सिर..हाथ..पैर सब कुछ धुंधले से नजर आ रहे हैं..आंखें नहीं दिख रही हैं...मेरे कदम और तेज हो चुके थे..और वो मानव आकृति मेरी तरफ पास आती जा रही थी..और रोशनी भी तेज होती जा रही थी..आप समझ सकते हैं कि मेरी हालत उस वक्त क्या थी...मैं हांफता हुआ हवेली की ओर भाग रहा था..और वो रोशनी मेरे पीछे-पीछे आ रही थी...हवेली में घुसते ही चैन की सांस ली..दरवाजा बंद कर दिया..और चुपचाप लालटेन लेकर पढ़ने के लिए बैठ गया..लेकिन तभी हवेली के गेट खटखटाने से मेरी हालत पतली हो चुकी थी..कोई गेट खट-खटा रहा था..हो न हो ये वही आकृति है जो मेरा पीछा कर रही थी...कौन थी ये आकृति..क्या रहस्य है समाधि का...कल का इंतजार करिए.....
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