Friday, September 4, 2015

भूत की कहानी का 65 वां दिन(रात में गूंजती बांसुरी..चलती परछाईं)

दादी ने जो कहानी सुनाई वो रोंगटे खड़े कर देने वाली थी...उनके मुताबिक ये रियल घोस्ट स्टोरी थी। हवेली से लगा हुआ है हमारा खेत और उस खेत में आखिरी छोर पर आम का बड़ा पेड़ है। वो बता रही थीं कि जब हम इस हवेली में आए..तो बड़े किस्से सुने थे..लेकिन जब देखा तो हैरान रह गए। गांव के लोगों का कहना था कि उस हवेली और खेत में भूत-प्रेत हैं..आत्माएं भटकती हैं लेकिन दादी जी बड़े रौबदार थे..किसी की परवाह नहीं करते थे और गांव के ज्यादातर लोग उनके दबदबे से प्रभावित थे..पूरे गांव में जलवा था उनका..जब लोगों ने उन्हें डराया तो बोले..ऐसे भूत-प्रेत को तो चुटकियों में उड़ा दूंगा..ये हवेली और खेत दादा जी ने खरीदा था और नया आशियाना बनाने की तैयारी थी..जैसे ही हम लोग इस हवेली में दाखिल हुए तो पहले दिन से ही अजीब-अजीब घटनाएं शुरू हो गईं।

सबसे बड़ी मुश्किल ये थी कि हवेली में चाहे दिन हो या रात...परछाईयां नजर आती थीं..दिन की कड़ी धूप में ऐसी परछाईं जो कभी छोटी होती जाती थी तो कभी इतनी लंबी कि देखकर कोई भी डर जाए...परछाई पूरी हवेली में पसर जाती थी...इतनी लंबी टांगें कि खत्म होने का नाम न लें..ऐसी परछाईं हवेली में कहीं भी बनने लगतीं..यहां तक कि छत पर जाओ तो वहां भी परछाईं नजर आतीं..और तो और..कभी-कभी दीवारों पर ये परछाईं लंबी होती जाती और मिट जाती। दिन तक तो ठीक है..जब रात गहराती तो ये परछाईं चीख निकाल देती थी....रात के अंधेरे में जमीन पर पसरी परछाईं से इतना डर लगता कि पूछो मत...

ये परछाईं तो मुसीबत पैदा कर ही रही थी कि खेत में कभी-कभी बांसुरी की मधुर तान सुनाई देती..कभी आवाज बिलकुल धीमी आती तो कभी इतनी तेज..जैसे कोई पास में ही मौजूद हो। ये बांसुरी की आवाज इतनी अच्छी होती..कि लगता सुनते ही जाओ...कोई कलाकार जैसी आवाज..लेकिन कोई दिखाई नहीं देता..शुरू-शुरू में लगा कि कोई आसपास के खेत में या फिर खेत के किनारे से लगी सड़क पर बांसुरी बजाता हुआ निकलता है लेकिन डर तब और बढ़ गया जब ये बांसुरी की आवाज रात को भी सुनाई देनी लगी। ऐसी आवाज..कि नींद उड़ जाए..कभी बांसुरी की तान में खोने का मन हो तो कभी इसी बात का डर लगे कि आखिर कौन है..जो बांसुरी बजाता है और सामने नहीं आता है।
हवेली और खेत में ऐसे कारनामों से डर बढ़ने लगा लेकिन दादी जी कहां किसी के मानने वाले थे...जब भी बांसुरी की आवाज आती तो वे आवाज का अंदाजा लगाते हुए दूर तक खोज आते..पर कोई दिखाई नहीं देता लेकिन एक अंदाजा जरूर कई दिनों के बाद लगा कि ये बांसुरी की आवाज उस आम के पेड़ के पास जाकर खत्म हो जाती है...वहां तक सुनाई देती है लेकिन उससे आगे जाने पर नहीं...ये बांसुरी की आवाज और दिन-रात में बन रही परछाईं का क्या कोई संबंध हैं..या फिर दोनों अलग-अलग घटनाएं घटित हो रही हैं..दादी जी ने कहानी में आगे क्या बताया...कल का इंतजार करिए....

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