Monday, September 7, 2015

भूत की कहानी का 66 वां दिन (पायल की छम-छम किसकी थी?)

कभी लंबी होती परछाईं..कभी छोटी होती परछाईं..कभी दीवारों पर..कभी जमीन में दिखती परछाईं..ये सब एक तरफ चल रहा था तो दूसरी तरफ बांसुरी की तान..सुनने में भले ही अच्छी लगती हो..लेकिन डर बढ़ता जा रहा था कि आखिर कौन हैं जो परछाईं बनकर दिख रहा है..या फिर बांसुरी की तान सुबह..शाम..रात कभी भी छेड़ देता है...ये सब रहस्य बना ही हुआ था..कि एक दिन पायल जैसी झनकार ने सबके कान खड़े कर दिए..रुन-झुन-रुन--झुन पायल की आवाज कहीं से छन-छन कर आ रही थी...पहले खेत में सुनाई दी..फिर हवेली में भी सुनाई देनी लगी...ये आवाज कभी किसी कमरे के पास से आती लग रही थी तो कभी हवेली के गेट के पास से...रात में भी कभी-कभी पायल की छम-छम और बांसुरी की तान सबकी नींद उड़ा रही थी...

दादा जी भले ही किसी से नहीं डरते थे..शुरू-शुरू में उन्होंने भी इसे वहम बताया लेकिन जब सारा परिवार इन आवाजों और परछाईंयों से परिचित हो गया तो सभी बेचैन थे...दादा जी कहां हार मानने वाले थे...उन्होंने कई बार दिन में ही नहीं रात में भी खेत पर अकेले ही दौरा किया..आवाज का पीछा किया..लेकिन आवाज लगातार दूर होती चली गई..या फिर बंद हो गई...कोई नजर नहीं आया। जब कई महीने हो गए..और हवेली में सब डरने लगे..तो दादा जी ने इसके निदान के लिए गांव में कई लोगों से संपर्क साधा....किसी ने बताया कि पास की पहाड़ी पर बने मंदिर में एक पुजारी रहते हैं..तंत्र-मंत्र के ज्ञाता हैं...साधना में तल्लीन रहते हैं..उनसे जाकर मिलिए...
दादा जी उनसे मिलने के लिए निकल पड़े...ये भी कम अदभुत नजारा नहीं था..पहाड़ी पर चढ़ते-चढ़ते वे बेहाल हो गए...कई किलोमीटर की चढ़ाई..हांफते-हांफते..शाम तक ऊपर पहुंचे..देखा कि चोटी पर थोड़ी सी जगह..कोई नहीं..सूनसान..छोटा सा मंदिर बना हुआ...मंदिर में दाखिल हुए..तो देखा..साधना में तल्लीन एक बुजुर्ग....दुबले-पतले..शरीर पर हड्डियां साफ नजर आ रहीं...लंबे-लंबे जटा...पूरे शरीर पर राख मली हुई...माथे पर लंबा सा तिलक लगा हुआ...और नीचे छोटी सी तौलिया लिपटी हुई...अकेला कोई आदमी उन्हें ही देखकर डर जाए..ऐसे सूनसान इलाके में अकेला प्राणी..वो भी इस वेशभूषा में...

दादा जी काफी देर तक सामने बैठे रहे...उनके सामने हाथ जोड़े हुए...जब उन्होंने आंखें खोलीं..तो वो भी आश्चर्य चकित उन्हें देखने लगे....कुछ देर मौन रहने का इशारा किया...अपनी पूजा पूरी होने के बाद पूछा कि आप कौन हैं..कैसे आए हैं...क्या समस्या है....जब उन्होंने पूरी बात सुनी...तो बोले..मैं तो कहीं जाता नहीं हूं...आप किसी और की शरण की जाईए...वे जानते तो सब हैं..लेकिन मंदिर से कहीं नहीं जाते....दादा जी क्या करते..काफी समझाने-बुझाने के बाद जब उन्होंने मना कर दिया तो मायूस होकर लौट आए....
पुजारी के मना करने के बाद क्या हुआ...किसने इन आवाजों के रहस्य को जाना...क्या इन आवाजों से निजात मिल पाई....कल का इंतजार करिए......
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