Thursday, March 5, 2015

भूत की कहानी का चौथा दिन (खिसकती परछाईं डरा रही थी)

दूसरे दिन शाम फिर ढलने को थी...सूरज आसमान में छिपता जा रहा था और अंधेरा पसरता जा रहा था। देखता हूं कि तभी दूर से एक परछाईं सी उभर रही है..जमीन पर आंखें झुकाए..सूरज की धीमी रोशनी में परछाईं लबीं होती जा रही थी..इस गांव के..इस हवेली के अजब नजारे देख मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ये भी एक दुनिया है..परछाईं आगे की ओर खिसकती जा रही थी..डर भीतर समा रहा था..दिख कोई नहीं रहा..फिर ये साया किसका लंबा हो रहा है..और आगे की ओर जा रहा है..तभी देखता हूं कि पिता जी कमरे से बाहर निकल रहे हैं..और परछाईं भी उन्हीं की है जो आगे की ओर जा रही है..चैन की सांस ली और मन ही मन डर के बाद मजा सा लगा। इतने में आंगन के एक कोने से दूर अचानक एक और आवाज गूंजी..फिर थोड़ी देर बाद एक और आवाज..मैं चौंक कर जिस ओर से आवाज आ रही थी.. उस ओर देखने लगा..तभी दादी ने बताया कि गाय की आवाज है..डरो मत..और फिर हाथ पकड़ ले गईं गाय दिखाने...

आंगन में छोटे-बड़े पेड़-पौधे..सब कुछ एक आंगन में...कई सब्जियां लगी हैं..कई फल लगे हैं...अंधेरा बढ़ता जा रहा है..ठंडी-ठंडी पुरवाई चल रही है..मन आनंदित था लेकिन बीच-बीच में  रात की चारपाई खिसकना..पानी में सांप का रेंगना..धूल के गुबार से बनती आकृति और फिर पिताजी का साया..कभी जानवरों की आवाज....लगा कि अलग ही दुनिया में आ गया हूं..कभी डर..कभी फन...लेकिन रात गहराते ही लालटेन की रोशनी में जैसे ही चारपाई पर लेटा..तो फिर पिछली रात की कहानी याद आने लगी। भाई के साथ लेटकर चादर तान ली लेकिन आंखों में नींद आने का नाम नहीं ले रही थी..कभी इस करवट..कभी उस करवट..थोड़ी सी आंखें खोलकर चारपाई का मुआयना कर रहा था कि कहीं हिल तो नहीं रही...अंदाजा लगा रहा था कि चारपाई अपनी ही जगह है या फिर आगे-पीछे हो रही है...तभी फिर लगा कि चारपाई हिली..डर बढ़ने लगा लेकिन पलट कर देखा तो भाई ने करवट ली थी और वो सो चुका था...धीरे-धीरे मेरी आंखें भी झपने लगीं...रात में एकदम सन्नाटा..अचानक कान के एक ओर से सन-सन करती आवाज..कभी आगे जाए..कभी पीछे...लगा कि कान के पास धीरे-धीरे कोई हल्की सी सीटी मार रहा था...पलकें ऊपर उठाऊं तो समझ में न आए कि आवाज कहां से आ रही है और कहां से जा रही है। रात बढ़ती जा रही थी और मेरी नींद फिर उड़ चुकी थी...अचानक फिर चारपाई के हिलने का अंदाजा सा हो रहा था..ठंडी पुरवाई में भी मुझे पसीना आना शुरू हो गया था...चारपाई धीरे-धीरे हिल-डुल रही थी..धीमे से करवट बदली और देखा कि भाई बेसुध लेटा हुआ है..फिर ये चारपाई कौन हिला रहा है..तभी लगा कि किसी ने मेरे शरीर को भी हिलाया-ढुलाया...मेरे सब्र का बांध टूट चुका था..डर को सहन करने की सीमा टूट चुकी थी..जोर की चीख मारी और चारपाई पर उठ बैठा..सामने नजर पड़ी तो देखा कि एक छोटे सी आकृति आंगन को पार करती हुई..गेट की तरफ जा रही है...पेड़-पौधे के झुरमुट में आकृति की एक झलक सी नजर आई और तेजी से लापता हो गई...मैं पसीना-पसीना था...चारपाई पर उठ कर बैठा था..बगल में बैठे भाई ने मुझे फिर चारपाई पर लिटाया और मैं कुछ कहता कि इससे पहले बोला कि चुपचाप सो जाओ..मेरी नींद मत खराब करो..न जाने कैसे-कैसे सपना देखता है..इतना कहकर खुद भी चादर तान कर लेट गया। ये रात कल की रात से भयानक थी..आज मुझे जो छोटी सी आकृति दिखी थी..उससे नींद तो कोसों दूर जा चुकी थी..ऊपर से नीचे आज भी रात भर चादर तानकर लेटा रहा.....वो आकृति कौन थी...कल का इंतजार करिए.......ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com