Thursday, July 23, 2015

भूत की कहानी का 29 वां दिन(एक भूत का भी हो गया क्रिया कर्म)

ये विस्फोट इतना भयानक था कि समझ में नहीं आया कि क्या हुआ है? लगा कि किला ही ध्वस्त हो गया क्या, अचानक से आंखों के सामने अंधेरा छा गया, और कान तेज आवाज से फट से गए। इसके बाद मुझे कुछ नहीं पता, जब होश आया तो देखा कि सोफे पर मैं लेटा हूं और लड़की बगल में बैठी पहले की तरह मुस्करा रही है। जैसे ही आंखें खुलीं, हड़बड़ाकर बैठ गया। सामने देखा तो भूतों का सरदार अपनी बत्तीसी निकालकर मुस्करा रहा था और बाएं से दाएं अपनी मुंडी हिला रहा था।


मैं भौंचक से कभी लड़की को देख रहा था कभी भूतों के सरदार को। आखिरकार लड़की कानों में बुदबुदाई, डरो मत, भूत योनि से एक की विदाई हो गई है और उसकी अंतिम क्रिया के बाद वो भूतिया किले से आजाद हो गया। ये हमारे लिए खुशी की बात है कि कम से कम उस भूत को इस नरक से विदाई मिली और अब सामान्य जीवन जीएगा। ये भूत कौन था, ये पूछने पर उसने विस्तार से बताया कि करीब दो साल पहले ही इसके रोड एक्सीडेंट में मौत हुई थी और ये शख्स दिल्ली का था, इसे अपने परिवार की सारें बातें याद थीं, कभी-कभी भूतों के सरदार से अनुमति लेकर ये अपने परिवार के पास चला जाता था और उन्हें देखकर आता था, दूर से या किसी विषेश आकृति बनकर उनके आसपास मंडराता रहता था, और जब लौटकर आता था तो बड़ा मायूस होता था, लेकिन भूतों की दुनिया में जल्दी ही घुलमिल जाता था। क्या उसकी भूत की उम्र दो साल ही थी? इस पर लड़की ने जवाब दिया, किसी को नहीं मालूम कि कौन कितने साल भूत रहेगा, कब तक इस नरक में सड़ना होगा लेकिन जब वक्त आता है तो एक विशेष क्रिया से पता चल जाता है कि भूत का अंतिम वक्त आ गया है और फिर ये विस्फोटक आवाज से सारे भूत जान जाते हैं कि उसकी उम्र खत्म हो चुकी है। हम भूत बढ़ने पर खुशी नहीं मनाते, बल्कि भूत कम होने पर जश्न मनाते हैं और आज रात उसके जाने की खुशी में यहां जलसा होगा, भूत अपना गम भुलाकर उसके जाने का जलसा मनाएंगे। भूतों की दुनिया के ये राज बड़े चौंकाने वाले थे। कहीं मौत पर शोक होता है यहां मौत पर जश्न होता है।

खैर, अब भूतों का सरदार मेरी ओर मुखातिब हुआ और बोला, बेटा, ये बच्ची तुम्हारी पत्नी है, तुम यहां बिलकुल सेफ हो, किसी से भी नहीं डरना और यहां भूतिया किले में ये लड़की मेरी बेटी है और इस किले का भूतिया राजा, तुम हमारे मेहमान हो, लेकिन ज्यादा वक्त यहां रहना ठीक नहीं, बेटी भी चाहती थी कि मैं तुमसे मिलूं, मुझे पता है कि ये भी तुमसे मिलने जाती है, मेरी इजाजत इसे मिली हुई है और इसके साथ कई पहरेदार भी रहते हैं कि कहीं नन्ही सी बच्ची को कोई परेशानी न हो, ये कहते कहते भूतों का सरदार दुखी सा नजर आने लगा, मैं देख रहा था कि भूतों में भी मनुष्यों की तरह संवेदनाएं होती हैं।
लड़की को जैसे ही सरदार का इशारा मिला, लड़की ने मेरा हाथ थामा और किले के दरवाजे की ओर चलने लगा..लेकिन तभी देखता हूं कि भूतों के सरदार ने जोर से फूंक मारी और एक सांप नुमा सी लंबी लकीर खिंच गई। मैं उस लकीर से घबराया तो लड़की ने समझाया कि इसी लकीर के सहारे चलना है जो दरवाजे तक जाएगी और इससे घबराना नहीं है बल्कि इसी लकीर पर पैर रखकर चलना है क्योंकि कोई भी भूत इस लकीर के आसपास भी नहीं फटकेगा। अजीब दुनिया है ये, भूतिया किले में भी भूतों से बचने का सुरक्षा कवच बनता है। जैसे ही किले के बाहर पहुंचा, राहत की सांस ली, करीब दो घंटे का ये समय था जो अब तक हमने आपको बताया, लड़की से विदा लेकर तेज कदमों से अपनी हवेली की ओर भागा, लेकिन भूतिया किले की रहस्यमयी दुनिया और कारनामे देखकर जिज्ञासा और बढ़ चुकी थी, एक तरफ किला था, दूसरी तरफ दादी, क्या सोच रही होंगी, चुपचाप हवेली पहुंचा देखा कि दादी को कोई एहसास नहीं, अभी स्कूल का वक्त ही हुआ था, आगे क्या होगा, क्या मैं फिर भूतिया किले जाऊंगा, और रहस्य जानूंगा, कल का इंतजार करिए।ये भी पढ़िए...amitabhshri.blogspot.com   whatsappup.blogspot.com