Wednesday, September 9, 2015

भूत की कहानी का 69 वां दिन(आधी रात को पेड़ के नीचे....)

आखिरकार गांव वालों और दादा जी की बात को बड़ी मुश्किल के बाद पुजारी जी मान ही गए..और मंगलवार को आने की बात कह कर उनसे सभी ने विदा ली। मंगलवार को सुबह-सुबह पुजारी जी हवेली में पधारे...हवेली और खेत का जायजा लिया...पूरे में घूमने के बाद उन्होंने कहा कि मैं रात को उसी पेड़ के नीचे अनुष्ठान करूंगा..हवन-पूजन की तमाम सामग्री उन्होंने दादा जी को लिखवाई...जिसे इकट्ठा किया गया..इसके बाद उन्होंने कहा कि शाम ढलते ही एक सहायक को छोड़ बाकी कोई भी हवेली और खेत पर नहीं रहेगा। पूरे इलाके को सूनसान छोड़ दिया जाए...शाम को दादा जी के अलावा सभी को हवेली से गांव के ही हमारे पुराने घर में शिफ्ट कर दिया गया।

इधर रात गहरा रही थी..एक लालटेन के अलावा दादा जी  और पुजारी हवेली में अकेले थे..पूरे इलाके में अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था..घर में जो गायें थीं..वो भी शिफ्ट कर दी गईं थीं..कोई भी नहीं...थोड़ी सी हवा चलती..हवा के पत्तों की सरसराहट होती..तो दादा जी को सिहरन दौड़ जाती...हट्टे-कट्टे दबंग दादा जी को उस दिन एहसास हुआ कि अकेले में किसी शख्स की कैसी हालत होती है और वो भी ऐसी जगह..जहां किसी अनहोनी की आशंका हो...पुजारी जी ज्यादा नहीं बोलते थे..या तो जाप करते रहते थे...या फिर कुछ सोचते रहते थे...ऐसे में रहस्यमयी शांति दादा जी को और भी परेशान कर रही थी।

रात में भोजन के बाद जैसे ही 12 बजने को हुए..पुजारी जी ने सारी सामग्री लेकर पेड़ के पास चलने को कहा..पुजारी जी आगे-आगे..दादा जी पीछे-पीछे...काली रात....कहीं कुछ भी चमकता..तो लगता है कि यहीं कोई है...कोई भी आवाज गूंजती तो लगता कि न जाने कौन है....आसमान से लेकर धरती तक..चारों तरफ..जहां नजर डालो..कोई नजर नहीं आ रहा...रात के अंधेरे में एक हाथ में लालटेन और दूसरे हाथ में सामग्री का थैला लेकर हम खेत के किनारे-किनारे...पेड़ के पास चले जा रहे थे...
तभी अचानक देखा कि किसी और पेड़ से कोई उड़ा...ऊपर देखा तो एक काली सी आकृति तेजी से पंख फड़फड़ाती हुआ...आसमान में दूर जाती हुई नजर आई...हो सकता है कि कोई पक्षी हो..या फिर कोई और..लेकिन जो कुछ भी हो रहा था..आशंका ही आशंका महसूस हो रही थी....और आगे बढ़े तो अचानक पुजारी जी कुछ बुदबुदाने लगे...कोई जाप कर रहे थे...अब तो दादा जी की हालत और खराब..जैसे ही पेड़ नजर आया तो देखा कि दो काले साये पेड़ के नीचे खड़े दिख रहे हैं...पुजारी जी मंत्रों का जाप तेज करते जा रहे थे और मैं उस पेड़ के चारों और आंखें फाड़-फाड़ कर देख रहा था..ये काले साये क्या वही है जो लड़की नृत्य करती है और जो नौजवान बांसुरी बजाता है...लेकिन दोबारा से देखा तो वहां कोई नहीं था...आंखें मलकर बार-बार गौर से देखा..पेड़ के नीचे कोई नहीं....आज रात क्या होने वाला है...कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए..
.अचानक पुजारी जी ने कहा कि अब आप आगे हो जाईए...और दाएं-बाएं बिलकुल न देखना..जैसा वो कह रहे हैं..करते जाना..कुछ भी इधर-उधर मत करना..न चीखना..न चिल्लाना...और न पीछे देखना..मैं उनके पीछे-पीछे आ रहा हूं...इतना कहना था कि दादा जी की घबराहट और बढ़ गई..कहीं ऐसा न हो..अचानक पुजारी जी गायब हो जाएं..तो वो इस भयावह जंगल में अकेले तो फंस ही जाएंगे.....लेकिन जैसा वो कह रहे थे..वैसा करना था..आधी रात का वक्त था..हम पेड़ के पास पहुंच चुके थे....पीछे मुझे मालूम भी नहीं था कि पुजारी जी हैं भी या नहीं..पेड़ के नीचे अंधेरा पसरा पड़ा था..पत्तियों की सरसराहट और भी बेचैन कर रही थीं...आधी रात को उस पेड़ के नीचे क्या हुआ...क्या पुजारी जी रहस्य खोल पाए..उस रहस्य में क्या खुलासा हुआ..कौन थे वे शख्स...कल का इंतजार करिए.....